Tuesday, February 8, 2011

राश्ट्रवाद पर भारी सांप्रदायिक राजनीति


‘‘भारतभूमि विभिन्न धर्मों के लोगों को सहोदर के रूप में मानती है और उसी रूप में उनका लालन-पालन करती है‘‘
  आचार्य चाणक्य का यह वाक्य नैतिकता और विष्वबंधुत्वता की दृश्टि से बिल्कुल सत्य है। परंतु राजसत्ता को बचाने की चुनौती और उसके फलस्वरूप की जाने वाली सांप्रदायिक राजनीति विभिन्न मतों एवं धर्मों के बीच भेद का और राश्ट्र के विखण्डन का कारण बनती है। सांप्रदायिकता की इस राजनीति का इतिहास पुराना है, जिस पर दृश्टि डालना हमारे लिए आवष्यक है।
सांप्रदायिक राजनीति का प्रारंभ-
दो ध्रुवों को साधने की कला को ही सांप्रदायिक राजनीति भी कहा जा सकता है। चाणक्य के समय में जब भारत में नंद वंष का षासन चल रहा था, तभी से इस प्रकार की राजनीति का प्रारंभ माना जाता है। नंद वंष के षासक घनानंद ने जब अपनी सत्ता को खतरे में देखा तो उन्होंने उस समय में नवीन दर्षन और मान्यताओं वाले महावीर और तथागत के संप्रदायों का तुश्टिकरण प्रारंभ कर दिया। जिसके कारण व्यक्ति-व्यक्ति में भेद उत्पन्न हो गया और वैदिक संस्कृति को मानने वाले तथा राजसत्ता के संरक्षण में रहने वाले महावीर और तथागत के संप्रदाय आमने-सामने आ गए। यही वह समय था जब भारत में धार्मिक एवं सांप्रदायिक सौहार्द में कमी आनी प्रारंभ हो गई। जो आज तक अनवरत जारी है।
सर्वधर्म समभाव की परंपरा पर आघात
जिस भारत में ‘‘सर्वधर्म समभाव‘‘ और ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम‘‘ की भावना प्राचीन समय से ही विद्यमान थी। उसी राश्ट्र में चाणक्य के समय से इस विचार का संस्कृति का लोप होना षुरू हो गया। या कहें की भारतीय संस्कृति पर हमले इतने हुए की, यह आदर्ष विचार उसी में धूमिल हो गया। भारत की सर्वधर्म परंपरा पर सबसे बड़ा आघात इस भूमि पर हुए बाहरी आक्रमण और उनका षासन रहा। मुगल षासन में सत्ता के कारण समाज प्रभावित हुआ। मुगल काल में कुछ आततायी षासकों ने हिंदू मंदिरों को तोड़ा और गोहत्या को भी मौन स्वीकृति दी। जिससे समाज बुरी तरह प्रभावित हुआ और समाज में षासन का दखल बहुत बढ़ गया। मुगलों के द्वारा ही तोड़ा गया राममंदिर का विवाद आज भी कायम है। जो समय-समय पर संघर्श का कारण बनता रहता है। मुगलों के काल से चली आ रही इस राजनीति का और भी वीभत्स रूप ब्रिटिष काल में समाज के सामने आता है।
अंग्रेजों का मुस्लिमों को संरक्षण
ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में व्यापार के लिए आए अंग्रेजों ने षासन को प्रभावित करना आरंभ किया। कुछ समय बाद ही उन्होंने षासन पर कब्जा भी जमा लिया। अंग्रेजों को भी अपनी सत्ता बचाने के लिए यह आवष्यक था की भारतीय एक न होने पाएं। इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने मुस्लिमों को वरीयता देते हुए सत्ता को बचाए रखने का प्रयास किया। अंग्रेजों की इस नीति को खाद-पानी द्विराश्ट्रवाद के जनक सर सैयद अहमद खां ने दिया। उन्होंने कहा की -
  ‘‘बेषक हिंदू और मुस्लिम एक ही षहर में रहते हैं और एक ही हवा और पानी का उपभोग करते हैं परंतु यह दोनों ही आपस में साथ रहते हुए भी अपने आप में अलग-अलग राश्ट्र के समान हैं।‘‘
उन्होंने ही समाज में विभाजन को बढ़ावा देने की अंग्रेजी साजिष का प्रतिपादन किया जिसका उदाहरण उनका यह कथन है-
 ‘‘ईसाई और मुस्लिम दोनों ही किताबी मजहब हैं लेकिन हिंदू बुत परस्त मजहब है, इसलिए ईसाई और मुस्लिम तो एक हो सकते हैं लेकिन हिंदू और मुस्लिम कभी एक नहीं हो सकते हैं।‘‘
इससे भी आगे बढ़कर उन्होंने तो अंग्रेजों को खिलाफतुल्लाह घोशित कर दिया। जिसका अर्थ होता है धरती पर अल्लाह का प्रतिनिधि। सर सैयद के इन कुत्सित प्रयासों का ईनाम ब्रिटिष सरकार ने उन्हें ‘‘सितारे-हिंद की उपाधि देकर दिया।
सर सैयद की प्रेरणा का ही यह परिणाम था कि षुरू में राश्ट्रवादी मुसलमान कहलाने में गर्व करने वाले जिन्ना ने राश्ट्र के विखण्डन का स्वप्न देखना प्रारंभ कर दिया। इसी विचारधारा से प्रेरित होकर  राम को ‘‘इमामे हिंद‘‘ की उपाधि देने वाले भारत भक्त इकबाल मोहम्मद ने पाकिस्तान की अवधारणा प्रस्तुत की। जिन्ना और इकबाल के इन कटटर विचारों का कारण भी केवल राजसत्ता प्राप्ति की महत्वकांक्षा ही थी। इसी पाकिस्तानी विचार के कारण ही डायरेक्ट एक्षन में हुई हिंसा में लाखों हिंदू और मुस्लिमों की हत्याएं हुई। जिसके फलस्वरूप भारत भूमि के आजाद होने से पहले ही उसके विभाजन की पटकथा लिख दी गई। परंतु इस राजनीति का अंत फिर भी नहीं हुआ और इसके खतरे आज भी हमारे समक्ष मौजूद हैं।
स्वतंत्रता के पष्चात तुश्टिकरण की राजनीति
भारत भूमि विभाजित रूप में स्वतंत्र हो गई, लेकिन विभाजन के लिए जिम्मेदार सांप्रदायिक तत्व नहीं समाप्त हुए। इसी का परिणाम था कि लाखों हत्याएं और देष का विभाजन होने के बाद भी कष्मीर की नई समस्या विकसित कर दी गई। कष्मीर मामले का अंतर्राश्ट्रीयकरण कर दिया गया। इससे समस्या का समाधान तो नहीं हुआ, लेकिन भारत को और टुकड़ों में विभाजित करने की रणनीति अवष्य बनने लगी। केवल इस तुश्टिकरण की राजनीति का ही परिणाम था की 555 रियासतों का पटेल ने आसानी से विलय भारतीय संघ में करवा लिया। लेकिन पंडित नेहरू की कुटिल नीतियों के कारण कष्मीर की समस्या विकसित हो गई। इसके बाद भी यह सिलसिला समाप्त नहीं होता है, और षाहबानो प्रकरण के रूप में हमारे सामने आता है। अर्थात जब-जब राजसत्ता पर खतरा महसूस हुआ है, ऐसी राजनीति का पासा फेंका गया है चाहे वह राजतंत्र का दौर रहा हो या फिर लोकतंत्र का। भारत के संविधान में धार्मिक आरक्षण का प्रावधान न होते हुए भी विभिन्न राज्यों में आरक्षण दिया गया। जैसे- केरल, आंध्र प्रदेष, कर्नाटक, एवं पष्चिम बंगाल में 10 प्रतिषत आरक्षण का ऐलान। यह आरक्षण केवल तब दिया गया जब कुर्सी को हिलता हुआ देखा गया, इसलिए समाज में एक वर्ग को विषेश संरक्षण देने की रणनीति पर काम किया गया। लेकिन कष्मीर से पलायन करने को मजबूर हुए कष्मीरी पंडितों का ध्यान नहीं किया गया क्योंकि वे वोटों के समीकरण पर खरा नहीं उतर पाते। आजादी के पष्चात इस प्रकार की राजनीति का सबसे वीभत्स रूप सन 1984 में देखने को मिला। जब राजधानी की सड़कों पर 5,000 सिखों का कत्ल कर दिया गया। इसके भी आगे जाते हुए वर्तमान यूपीए सरकार ने कष्मीर के आतंकी को पदम श्री से पुरस्कृत किया। देष के प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से देष के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला हक बताया। वहीं आतंकियों से जूझते हुए षहीद होने वाले मोहन चंद षर्मा की षहादत पर सवाल उठाया गया। उनके परिवार वालों से मिलने तो कोई नहीं गया लेकिन उन आतंकियों के यहां सभा अवष्य आयोजित की गई। जब इतने से भी मंसूबे पूरे नहीं हुए तो राममंदिर के अदालती फैसले पर प्रष्न चिन्ह लगाने का प्रयास किया गया। हिंदू आतंकवाद रूपी हौव्वा खड़ा किया गया और अल्पसंख्यक वोटों को लामबंद करने का प्रयास किया गया।
वास्तविक धर्मनिरपेक्ष लोग आगे आएं
यदि हमें इस विखण्डनकारी राजनीति में बदलाव लाना है तो वास्तविक धर्मनिरपेक्ष लोगों को आगे आना होगा। तभी धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़े सांप्रदायिक तत्वों से देष का विखण्डन होने से रोका जा सकेगा। तभी महान संत स्वामी दादूदयाल की यह पंक्तियां चरितार्थ हो पाएंगी-ः
        दोनों भाई हाथ-पग, दोनों भाई कान।
        दोनों भाई नैन हैं, हिन्दू मुसलमान।।
वास्तव में भारत में यदि सर्वधर्म समभाव की भावना को कायम रखना है तो हमें इन तत्वों से सावधान रहना होगा। तभी भारत मां के आंचल में एक ही षरीर के विभिन्न अंगों की तरह एक साथ रह पाएंगे। अन्यथा वह देव भूमि जिसके लिए कहा गया है कि-
     उत्तरं यत् समुद्रस्य, हिमाद्रेष्चैव दक्षिणम।
     वर्श तद भारतं, नाम भारती यत्र संतति।।
सुरक्षित नहीं रह पाएगी, और न ही उसमें रहने वाली संतति ही सुरक्षित रह पाएगी। यदि हम वास्तव में देषभक्त हैं, भारतभक्त हैं तो हमें इन सांप्रदायिक खतरों से सावधान रहना होगा। साथ ही यह ध्यान भी रखना होगा कि कहीं हम इनके बहकावे में न आ जाएं। हमें ऐसे ही संयम एवं सद्भावना का परिचय देना होगा, जैसे राममंदिर फैसले के वक्त दिया था। यही इन सांप्रदायिक तत्वों से देष के बचाव का सबसे अच्छा तरीका होगा।  

3 comments:

  1. आपकी लेखन शैली उत्कृष्ट है।

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  2. हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसका अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । धन्यवाद सहित...
    http://najariya.blogspot.com/

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  3. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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