Saturday, February 12, 2011

भ्रष्टाचार का महाकुम्भ

  भारत में इन दिनों भ्रष्टाचार का महाकुम्भ चल रहा है. जिस तरह महाकुम्भ में ज्यादा से ज्यादा लोग पहुँच कर डुबकी लगाते हैं, उसी प्रकार से देश में भ्रष्टाचार का महाकुम्भ चल रहा है. इस कुम्भ में नेता,अभिनेता,न्यायाधीश,नौकरशाह, व्यापारी सभी डुबकी लगा रहे हैं. इसकी वजह यह है कि उन्हें इसका दुबारा मौका मिलेगा या नहीं यह निश्चित नहीं है. इसलिए पीढ़ियों के लिए धन जोड़ने में जल्दी कर रहे हैं. देश में बेरोजगारी बढती जा रही ऐसे में इनके बच्चों को रोजगार के लिए न भटकना पड़े,इसलिए बेचारे उनकी व्यवस्था करे जा रहे हैं. खैर इसमें उनकी कोई गलती भी नहीं है, यह तो माता-पिता का कर्त्तव्य होता है. फिर जनता तो आखिर जनता ही है, वह तो अपना कमा ही लेगी. लेकिन इनकी फाईव स्टार जिंदगी कैसे कटेगी,इसके लिए तो घोटाला परम आवश्यक है. फिर आम जनता के लिए भारतीय संस्कृति में बताया गया संतोषम परम सुखं का मंत्र तो है ही है. अर्थात संतोष ही सबसे बड़ा सुख है. जब संतोष ही सबसे बड़ा सुख है,तो फिर धन-दौलत का क्या करना है. लेकिन उनके लिए तो धन ही सुख का साधन है, इसलिए उनको ही इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है. यह तो अब हमको-आपको समझ ही लेना चाहिए, कि राजसत्ता जाने का दुःख क्या होता है. राम के वनवास जाने का बड़ा दुखमय वर्णन आज भी किया जाता है,फिर ये तो साधारण मनुष्य ही हैं. अपने देश में यह भी कहा जाता है कि जिसके पास खोने को कुछ नहीं होता है, वह सबसे सुखी इन्सान होता है. इस कथन के आधार पर भी हमें शांत ही रहना चाहिए. नाहक क्यों किसी का जलूस निकाले जा रहे हैं. जब संतोष ही सबसे बड़ा सुख है तो फिर संतोष करिए. इससे भी मन नहीं मानता है तो,अख़बार पढ़ते वक्त चिंता व्यक्त कीजिये. क्योंकि यही अब हम लोगों का स्वभाव जो बन गया है. हमें अपने काम से ही समय नहीं है तो फिर हम कुछ कर कैसे सकते हैं.
यह मेरा कहना नहीं है, ऐसा इस देश के वातावरण को देख कर लग रहा है. जीडीपी का ५० प्रतिशत धन स्विस बैंक में जमा है.अब तक करीब चार लाख करोड़ के घोटाले सामने आ चुके हैं, लेकिन आम लोग, हम लोग इस मुद्दे को लेकर कितनी बार सड़क पर उतरे हैं, शायद एक भी बार नहीं. शायद हम लोगों के लिए संतोष ही परम सुख हो गया है. नहीं तो जातिगत आरक्षण के लिए आगजनी करने वाले हम लोग इन घोटालों के ठेकदारों के विरोध में क्यों नहीं सड़क पर आते हैं. सगोत्र विवाह हमें बर्दाश्त नहीं है, प्यार करने वाले हमारे दुश्मन हैं, लेकिन यह भ्रष्ट व्यवस्था हमें कैसे बर्दाश्त है. युवा पीढ़ी के कदम थामने को, दलितों पर अत्याचार को स्वीकृति देने को पंचायतें आये दिन लगती रहती हैं, लेकिन इन राष्ट्रव्यापी मुद्दों पर क्यों जुबान नहीं खुलती है. समाज के आम लोगों के लिए तो देवबंद से भी फतवे आ रहे हैं, लेकिन देश को हुए भ्रष्टाचार रुपी लकवे से कौन बचाएगा. यह हमारी नहीं तो किसकी जिम्मेदारी है, इसकी भी निगरानी अमेरिका तो नहीं करने वाला है. या शायद हमारी मानसिकता इतनी संकीर्ण हो गयी है, कि हमें देश हित सबसे आखिरी में भी नहीं दिखता है. हमारी लड़ाई हमें लड़नी होगी, अपना तहरीर चौक हमें ढूंढना होगा, तभी देश कि लुंज-पुंज व्यवस्था में कुछ सुधार हो सकता है. यदि संतोष ही सबसे बड़ा सुख होता है तो, तो भय बिना प्रीत भी नहीं होती है इसलिए हमें निरंकुश शासन को सुधरने के लिए आगे आना ही होगा. इससे पहले कि यह राष्ट्र मिस्त्र,यमन,जोर्डन, ट्यूनीशिया कि राह पर चला जाये. हमें यहाँ कि मुबारक सत्ता को आईना दिखाना ही होगा. यही भारत में लोकतंत्र कि रक्षा के लिए, अराजकता से देश को बचाने के लिए आवश्यक हो चुका है. किसी भी बुराई का अंत लड़ाई से होता है, तो हो जाइये तैयार इस लड़ाई के लिए, देश को बचाने के लिए. भ्रष्टाचार पर हमारी विजय ही, लोकतंत्र कि विजय होगी.

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