Friday, February 25, 2011

स्वातंत्र्य वीर सावरकर को शत-शत नमन ...



 यह धरा मेरी यह गगन मेरा,
इसके वास्ते शरीर का कण-कण मेरा.                                                                                                                      इन पंक्तियों को चरितार्थ करने वाले क्रांतिकारियों के आराध्य देव स्वातंत्र्य वीर सावरकर की २६ फरवरी को पुण्यतिथि है. लेकिन लगता नहीं देश के नीति-निर्माता या मीडिया इस हुतात्मा को श्रद्धांजलि देने की रस्म अदा करेंगे. लेकिन चलिए हम तो उनके आदर्शों से प्रेरणा लेने का प्रयास करें. भारतभूमि को स्वतंत्र कराने में जाने कितने ही लोगों ने अपने जीवन को न्योछावर किया था. लेकिन उनमें से कितने लोगों को शायद हम इतिहास के पन्नों में ही दफ़न रहने देना चाहते हैं. इन हुतात्माओं में से ही एक थे विनायक दामोदर सावरकर. जिनकी पुण्य तिथि के अवसर आज मैं उनको शत-शत नमन करता हूँ. 
                  क्रांतिकारियों के मुकुटमणि और हिंदुत्व के प्रणेता वीर सावरकर का जन्म २८ मई, सन १८८३ को नासिक जिले के भगूर ग्राम में हुआ था. इनके पिता श्री दामोदर सावरकर एवं माता राधाबाई दोनों ही धार्मिक और हिंदुत्व विचारों के थे. जिसका विनायक दामोदर के जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा. वीर सावरकर के ह्रदय में छात्र जीवन से ही ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विद्रोह के विचार उत्पन्न हो गए थे. छात्र जीवन के समय में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से वीर सावरकर ने मातृभूमि को स्वतंत्र कराने की प्रेरणा ली. सावरकर ने दुर्गा की प्रतिमा के समय यह प्रतिज्ञा ली कि- ''देश कि स्वाधीनता के लिए अंतिम क्षण तक सशस्त्र क्रांति का झंडा लेकर जूझता रहूँगा.''
    वीर सावरकर ने लोकमान्य तिलक के नेतृत्व में पूना में विदेशी वस्त्रों कि होली जलाकर विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार कि घोषणा की. इसके बाद वे लोकमान्य तिलक की ही प्रेरणा से लन्दन गए. वीर सावरकर ने अंग्रेजों के गढ़ लन्दन में भी  क्रांति की ज्वाला को बुझने नहीं दिया. उन्हीं की प्रेरणा से क्रांतिकारी मदन लाल धींगरा ने सर लोर्ड कर्जन की हत्या करके प्रतिशोध लिया. लन्दन में ही वीर सावरकर ने अपनी अमर कृति ''१८५७ का स्वातंत्र्य समर की रचना'' की. उनकी गतिविधिओं से लन्दन भी काँप उठा. १३ मार्च,१९१० को सावरकर जी को लन्दन में गिरफ्तार कर लिया गया. उनको आजीवन कारावास की सजा दी गयी. कारावास में ही २१ वर्षों बाद वीर सावरकर की मुलाकात अपने भाई से हुई. दोनों भाई २१ वर्षों बाद आपस में मिले थे, जब वे कोल्हू से तेल निकालने के बाद वहां जमा कराने के लिए पहुंचे. उस समय जेल में बंद क्रांतिकारियों को वहां पर कोल्हू चलाना पड़ता था. 
    वर्षों देश को स्वतंत्र देखने की छह में अनेकों यातनाएं सहने वाले सावरकर ने ही हिंदुत्व का सिद्धांत दिया था.      स्वातंत्र्य वीर सावरकर के बारे में लोगों के मन में कई भ्रांतियां भी हैं. लेकिन इसका कारण उनके बारे में सही जानकारी न होना है. उन्होंने हिंदुत्व की तीन परिभाषाएं दीं-
(१)- एक हिन्दू के मन में सिन्धु से ब्रहमपुत्र तक और हिमालय से कन्याकुमारी तक संपूर्ण भौगौलिक देश के प्रति अनुराग होना चाहिए. 
(२)- सावरकर ने इस तथ्य पर बल दिया कि सदियों के ऐतिहासिक जीवन के फलस्वरूप हिन्दुओं में ऐसी जातिगत विशेषताएँ हैं जो अन्य देश के नागरिकों से भिन्न हैं. उनकी यह परिभाषा इस बात कि परिचायक है कि वे किसी एक समुदाए या धर्म के प्रति कट्टर नहीं थे. 
(३)- जिस व्यक्ति को हिन्दू सभ्यता व् संस्कृति पर गर्व है, वह हिन्दू है. 
          स्वातंत्र्य वीर सावरकर हिंदुत्व के प्रणेता थे. उन्होंने कहा था कि जब तक हिन्दू नहीं जागेगा तब तक भारत कि आजादी संभव नहीं है. हिन्दू जाति को एक करने के लिए उन्होंने अपना समस्त जीवन लगा दिया. समाज में व्याप्त जातिप्रथा जैसी बुराइओं से लड़ने में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया. सन १९३७ में सावरकर ने कहा था कि- 
   ''मैं आज से जातिओं कि उच्चता और नीचता में विश्वास नहीं करूँगा, मैं विभिन्न जातियों के बीच में विभेद नहीं करूँगा, मैं किसी भी जाति के व्यक्ति के साथ भोजन करने को तत्पर रहूँगा. मैं अपने आपको केवल हिन्दू कहूँगा ब्राह्मन, वैश्य या क्षत्रिय नहीं कहूँगा''. विनायक दामोदर सावरकर ने कई अमर रचनाओं का लेखन भी किया. जिनमें से प्रमुख हैं हिंदुत्व, उत्तर-क्रिया, १८५७ का स्वातंत्र्य समर आदि. वे हिन्दू महासभा के कई वर्षों तक अध्यक्ष भी रहे थे. उनकी मृत्यु २६ फरवरी,१९६६ को २२ दिनों के उपवास के पश्चात हुई. वे मृत्यु से पूर्व भारत सरकार द्वारा ताशकंद समझौते में युद्ध में जीती हुई भूमि पकिस्तान को दिए जाने से अत्यंत दुखी थे. इसी दुखी मन से ही उन्होंने संसार को विदा कह दिया. और क्रांतिकारियों की दुनिया से वह सेनानी चला गया. लेकिन उनकी प्रेरणा आज भी हमारे जेहन में अवश्य होनी चाहिए केवल इतने के लिए मेरा यह प्रयास था कि उनके पुण्यतिथि पर उनके आदर्शों से प्रेरणा ली जाये. स्वातंत्र्य वीर सावरकर को उनकी पुण्य तिथि पर उनको शत-शत नमन...     

1 comment:

  1. सूर्या प्रकाश जी सबसे पहले की क्रांतिकारी वीर की पुन्य तिथि को प्रस्तुत करने पर आपको हार्दिक प्रशंसा,व् वधाई बहुत ही अच्छा लगा इस महान वीर को मेरा कोटि कोटि नमन !

    ReplyDelete