Tuesday, February 22, 2011

वैश्वीकरण की भारतीय अवधारणा

  वैश्वीकरण तथा भूमंडलीकरण वर्तमान दौर में सबसे चर्चित विषय है. सामान्य अर्थों में समस्त विश्व का एक मंच पर आना, वैश्विक ग्राम की संकल्पना, व्यापारिक प्रतिबंधों का हटना ही वैश्वीकरण का पर्याय माना जाता है. इन सभी में आज जो वैश्वीकरण का सबसे प्रभावी अर्थ समझा जाता है,वह है विश्व के सभी देशों का व्यापारिक रूप से जुड़ना. वैश्वीकरण के सन्दर्भ में बहस का विषय यह है की वैश्वीकरण का जन्म पश्चिमी देशों द्वारा विभिन्न देशों को अपना उपनिवेश बनाने से होता है. या वैश्वीकरण की प्रक्रिया पहले भी अस्तित्व में थी. यदि भारतीय परिप्रेक्ष्य में वैश्वीकरण की चर्चा करें, तो ज्ञात होता है की वैश्वीकरण की प्रक्रिया हमारी संस्कृति का ही एक अंग है. हमारे धर्म-शास्त्रों में वैश्वीकरण को कई जगह स्पष्ट भी किया गया है जैसे-
                 अयं निज परोवेति गणना लघुचेतसाम.
                उदार चरिताम तु वसुधैव कुटुम्बकम. 
   अर्थात यह तेरा यह मेरा है ऐसी बातें छोटे ह्रदय के लोग करते हैं. उदार चरित्र वाले व्यक्ति के लिए संपूर्ण वसुधा ही एक परिवार के समान है. लेकिन वैश्वीकरण का यह अर्थ आज के वैश्वीकरण से मेल नहीं खाता है. आज के समय में वैश्वीकरण का अर्थ विशुद्ध व्यापारिक संबंधों से है, और केवल अपने उत्पादों के लिए बाजार ढूंढने तक ही सीमित है. जिसके सुखद परिणाम कम ही देखने को मिले हैं. बल्कि इस वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण के कारण ही विश्व को अनेक समस्याओं का सामना भी करना पड़ रहा है. 
         भारतीय अर्थों में वैश्वीकरण का अर्थ धार्मिकता और नैतिकता के वैश्विक प्रचार और प्रसार से है. इसी प्रकार से भारतीय संस्कृति में यह भी कहा गया है कि -
             सर्वे भवन्तु सुखिनः,
             सर्वे सन्तु निरामयाः ,
             सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,
             माँ कश्चित् दुःख भागभवेत.
  अर्थात- संसार में सभी सुखी हों, निरोग हों, सभी जनों का कल्याण हो और समाज के किसी भी व्यक्ति को दुःख न भोगना पड़े. भारतीय दृष्टि में वैश्वीकरण का अर्थ धार्मिकता और नैतिकता को विश्व-पटल पर प्रसार करने से है. भारतीय दृष्टि वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत समस्त विश्व के मंगल की कामना करती है. लेकिन वैश्वीकरण के सन्दर्भ में पाश्चात्य चिंतन केवल अपने व्यापारिक, साम्राज्यवादी, उपनिवेशवादी, और छोटे देशों के शोषण को वैश्वीकरण की संज्ञा देता है. निष्कर्षतः यही कहा जा सकता है की भारतीय और पश्चिमी देशों के चिंतन में वैश्वीकरण को लेकर मतभिन्नता है. लेकिन वैश्वीकरण की भारतीय परिभाषा जनकल्याण और विश्वकल्याण की दृष्टि से सर्वथा उपयुक्त और प्रभावी है.    

1 comment:

  1. उत्तम लेख. आपके विचारों से सहमत हूं. आज वैश्वीकरण का अर्थ विश्व के देशों के बीच व्यापारिक समझौतों से ही लगाया जाता है. विभिन्न देशों के धर्मों, संस्कृतियों, भाषाओं, तौर तरीकों का आदान प्रदान भी वैश्वीकरण की देन है. आज भारतीय संस्कृति वैश्वीकरण से ही प्रभावित हुई है.

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