Tuesday, March 8, 2011

पर्यावरण संरक्षण के उपायों पर अमल की जरूरत


    पिछले कई वर्षों से पर्यावरण को लेकर वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर बहस चल रही है. पर्यावरण संरक्षण के उपायों और क्रियान्वयन को लेकर, प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सम्मलेन आयोजित किये जाते हैं. इन सम्मेलनों में भी वैश्विक स्तर पर कोई व्यापक सहमति नहीं बन पाई है. जिससे पर्यावरण संरक्षण को लेकर कोई पहल की जा सके. पर्यावरण संरक्षण, ओज़ोन परत की चिंता अभी तक केवल बहस का ही विषय रहे हैं. इनका हल निकालने की दिशा में कोई प्रगति नहीं हो पाई है. या कहें की इच्छाशक्ति के अभाव के कारण पर्यावरण संरक्षण के उपायों पर अमल नहीं किया जा सका है. शायद हम लोग पर्यावरण को लेकर तभी चेतना में लौटेंगे, जब हमारे पास प्रकृति की प्रलय से बचने का समय ही नहीं रह जायेगा. 
        पर्यावरण संरक्षण को लेकर यदि भारत की बात की जाये तो हमने भी इस मसले को लेकर कोई ख़ास संजीदगी नहीं दिखाई है. भारत में पर्यावरण की स्थिति चिंताजनक है, साथ ही सरकार के लचर रवैये ने इस चिंता को और बढ़ाने का काम किया है. पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में जरूर पर्यावरण संरक्षण के उपायों को लेकर संजीदगी दिखाई थी. लेकिन जयराम रमेश अपने प्रयासों को परवान नहीं चढ़ा सके. औद्योगिक लॉबी की मांगों और सरकार की नीतियों के समक्ष पर्यावरण मंत्री को समझौता करना ही पड़ा. पर्यावरण मंत्रालय ने तो समझौता कर लिया है, लेकिन ध्यान रहे की प्रकृति कभी समझौता नहीं करती है. जयराम रमेश ने सरकारी नीतियों के दबाव में आकर पिछले दिनों कई विवादित प्रोजेक्टों को मंजूरी देने का काम किया है. जो की देश के पर्यावरणीय सेहत को भारी नुक्सान पहुंचा सकते हैं. हालिया समय में कई विवादित प्रोजेक्टों को पर्यावरण मंत्रालय ने मंजूरी दी है, जो आने वाले समय में पर्यावरण की सेहत को बिगाड़ने का काम करेंगे. इनमें से उड़ीसा में लगने वाली पोस्को परियोजना, नवी मुंबई एअरपोर्ट, गिरनार वन विहार में रोप वे, आंध्र का पोलावरम बाँध और उत्तरांचल की स्वर्णरेखा परियोजना. इन परियोजनाओं से पर्यावरण को बड़े पैमाने पर नुकसान होने वाला है. 
   पोस्को परियोजना- पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने उड़ीसा में दक्षिण कोरिया की कंपनी पोस्को को इस्पात कारखाना लगाने की अनुमति दे दी है. यह परियोजना ३,०९६ एकड़ भूमि में लगे जाएगी. इसके विरोध में आदिवासी समुदाय पांच वर्षों से अहिंसक प्रदर्शन कर रहे  थे. लेकिन भारत की व्यवस्था ने शायद अहिंसक प्रदर्शनों की आवाज सुनना ही बंद कर दिया है. यह भारत में इस्पात उत्पादन का सबसे बड़ा कारखाना होगा. इस कारखाने में इस्पात उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर लौह अयस्क का खनन होगा जो पोस्को को रियायती दरों पर दिया जायेगा. जिससे आने वाले समय में भारत को लौह अयस्क की कमी का भी सामना करना पद सकता है. यह भारत की अनमोल प्राकृतिक विरासत की खुली लूट है. यहाँ होने वाले इस्पात उत्पादन को निर्यात किया जायेगा, तथा निर्यात के लिए बंदरगाह बनाने की भी योजना प्रस्तावित है. जिससे समुद्र तट और डेल्टा क्षेत्रों का पर्यावरण तेजी से बदलेगा. पर्यावरण के साथ-साथ मछुवारों की आजीविका पर भी संकट आ जायेगा, जिनकी संख्या २,५०० से भी अधिक है. बंदरगाह बनाये जाने से विभिन्न प्रजाति के समुद्री जीवों का जीवन भी संकटग्रस्त हो जायेगा. इतने लोगों के विस्थापन और आजीविका छिनने के बाद, इस परियोजना से केवल ७,००० लोगों को ही रोजगार मिलने वाला है. पोस्को परियोजना से सम्बंधित इन आंकड़ों के माध्यम से, हम यह जान सकते हैं की यह परियोजना कितनी विनाशकारी सिद्ध हो सकती है. पोस्को ही नहीं कई अन्य परियोजनाएं भी हैं, जिन्हें पर्यावरण मंत्रालय ने लोगों के विरोध के बावजूद मंजूरी दी है. 
    पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पोस्को परियोजना को दी गयी मंजूरी ने गलत परंपरा की शुरुआत कर दी है. जिससे आने वाले समय में पर्यावरण संरक्षण के उपायों को ठेस लग सकती है| पोस्को जैसी परियोजनाओं ने अतुल्य भारत की प्राकृतिक सौन्दर्य को बर्बाद करने का काम किया है. यह भारत के अनुपम प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन है. इसे तत्काल रोके जाने की जरूरत है. 

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