Thursday, March 10, 2011

महाराणा प्रताप की सेना थारू जनजाति

 भारत में जनजातीय समुदायों की जनसंख्या ८ करोड़ के करीब है. इनमें से एक है महाराणा प्रताप की सेना थारू जनजाति. भारत जनजातीय समुदायों ने मानव जीवन की एक सामानांतर सभ्यता को कायम किया है. जनजातीय समुदायों ने भारतीय परंपरा और सभ्यता को बचाने का सफल प्रयास किया है. इनमें से ही प्रमुख है हिमालय की तलहटी में रहने वाली ''थारू जनजाति''. 
 ''थारू जनजाति'' उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती नेपाल और उत्तराँचल के उधमसिंह नगर जनपद में मुख्य रूप से बसी हुई है. प्रत्येक जनजाति अपनी उत्पत्ति इतिहास के किसी श्रेष्ठ व्यक्ति से मानती है. ''थारू जनजाति'' के लोग स्वयं को भारतीय संस्कृति के स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप की सेना मानते हैं. थारू जनजातीय समुदाय के लोग पांच शताब्दी पूर्व गंगा की इस तलहटी में आकर बसे थे. जब मुगलों ने राजस्थान के राजपूताना राज्यों पर आक्रमण किया, और भारतीय सभ्यता को नष्ट करने के भरसक प्रयत्न किये. तब महाराणा प्रताप ने ही मुग़लों से लोहा लेने का काम किया था. जब जयपुर के राजा मानसिंह ने मुग़ल राजा अकबर से संधि कर ली. महाराणा प्रताप का छोटा भाई भी, मुग़लों से जा मिला. राजा मानसिंह ने मुग़लों का सेनापति बन राणा पर आक्रमण किया. महाराणा प्रताप और मानसिंह के बीच १५७६ में हल्दीघाटी का ऐतिहासिक संग्राम हुआ. इस संग्राम में महाराणा की समस्त सेना मारी गयी. सेना के मारे जाने के पश्चात् महाराणा को स्थान-स्थान पर भटकना पड़ा. यही वह समय था जब मुग़लों से त्रस्त राजपूताना राज्यों के १२ राजपरिवार हिमालय के तराई क्षेत्र में आकर बस गए. यहीं से थारू जनजाति की व्युत्पत्ति मानी जाती है.
            थारू जनजाति की विशेषता- थारू जनजाति को सन १९६७ में भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था. थारू जनजाति के अंतर्गत ७ उपसमूह आते हैं राणा(थारू),बुक्सा, गडौरा, गिरनामा, जुगिया दुगौरा, सौसा, एवं पसिया. इन जनजातीय समुदायों के १२ गाँव उधमसिंह नगर जिले में हैं. थारू जनजाति के लोग स्वयं को थार भूमि का मूल निवासी मानते हैं. थारू जनजातीय लोगों ने उधमसिंह नगर जिले में अपने राजाओं के नाम से १२ गांवों को बसाया था. जिनमें से प्रमुख हैं सिसौदिया राजा के नाम से सिसौना गाँव, रतन सिंह के नाम से रतनपुर इसी प्रकार से पूरनपुर, प्रतापपुर, वीरपुर आदि गाँव इन जनजातीय लोगों ने बसाए. 
         थारू जनजाति की भाषा- थारू लोगों की अपनी एक पृथक भाषा है. यह भाषा लगभग हिंदी के ही समान है. इस भाषा पर राजस्थानी भाषा का भी व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है. थारू लोगों की इस भाषा की कोई लिपि नहीं है. 
        थारू जनजाति में परिवार व्यवस्था- थारू जनजाति के लोगों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था देखने को मिलती है. थारू जनजाति पुरुष प्रधान जाति है. थारू जनजाति की संयुक्त परिवार व्यवस्था ही इस जनजाति की विशेषता है. थारू जनजाति के प्रत्येक गाँव में एक मुखिया(प्रधान) होता है. थारू जनजाति में समाज के वयोवृद्ध व्यक्ति को ही मुखिया बनाने की परंपरा रही है. गाँव का मुखिया ही झगड़ों का निपटारे और विवाह आदि मामलों का निर्णय लेते हैं. 
       पहनावा और रहन-सहन- थारू जनजाति की स्त्रियों की वेश-भूषा राजपूत रानियों के समान होती है. थारू स्त्रियाँ रानियों के संमान ही गहने पहनती हैं. थारू पुरुषों की भी वेश-भूषा राजपूत राजाओं के समान ही होती है. 
थारू जनजाति में बाल-विवाह की प्रथा रही है. थारू जनजाति में इस कुप्रथा का चलन मुग़ल आतताइयों के अत्याचारों के कारण हुआ था. मुग़ल आतताइयों से कन्याओं की रक्षा की खातिर इस समुदाय में बाल-विवाह की कुप्रथा ने जन्म ले लिया था. थारू समुदाय के लोग अब तक कच्चे मकानों में रहते थे, जो मिटटी की ईंटों, बांस, खरिया, छप्पर आदि से बनाये जाते थे. लेकिन समय बीतने के साथ ही थारू लोगों पर अजनजातीय प्रभाव पड़ना आरंभ हुआ, और थारू लोगों  ने भी आधुनिक शैली से बने पक्के मकानों में रहना आरंभ कर दिया. 
    थारू जनजाति की संयुक्त परिवार व्यवस्था और विधवा विवाह की परंपरा आज के आधुनिक लोगों को भी कुछ सीख देने का काम करती है. थारू जनजातीय समुदाय आज भी भारतीय संस्कृति के स्वाभिमानी प्रतीक-पुरुष महाराणा प्रताप की जयंती को प्रतिवर्ष बड़े ही धूमधाम से मनाता है. थारू लोगों को गर्व है की वे महाराणा प्रताप के सैनिक हैं. सही अर्थों में कहा जाये तो थारू समुदाय ने महाराणा प्रताप की विरासत को बखूबी सहेजने का काम किया है. यह समुदाय आज भी महाराणा प्रताप के आदर्शों से प्रेरणा लेते हुए भारतीय संस्कृति को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है.   
      

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