Tuesday, March 15, 2011

चित्तौड़ की होली का ऐतिहासिक महत्व



फाल्गुन आते ही समस्त भारत के लोग होली के विभिन्न रंगों से सराबोर हो जाते हैं. भारत के विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में विभिन्न तरीकों से होली का पर्व मनाया जाता है. लेकिन वीर भूमि राजस्थान के उदयपुर जिले की झाडौल तहसील में मनाई जाने वाली होली का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है. उदयपुर की झाडौल तहसील स्वाभिमानी झाला राजाओं की जागीर थी. भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप के सेनापति भी झाला ही थे.  
झाला राजाओं की जागीर झाडौल से १५ किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर आज भी एक किला मौजूद है. जिसे महाराणा प्रताप के दादा के दादा महाराजा कुम्भा ने बनवाया था, यह किला आवरगढ़ के किले के नाम से विख्यात है. 
जब मुग़ल शासक अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, तब आवरगढ़ का किला ही चित्तौड़ की सेनाओं के लिए सुरक्षित स्थान था. सन १५७६ में महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के मध्य हल्दी घाटी का संग्राम हुआ था. हल्दी घाटी के समर में घायल सैनिकों को आवरगढ़ के इसी किले में उपचार के लिए लाया जाता था. हल्दी घाटी के युद्ध के पश्चात झाडौल जागीर में स्थित पहाड़ी पर जहाँ आवरगढ़ का किला स्थित है, वहीँ पर सन १५७७ में  महाराणा प्रताप ने होली जलाई थी. उसी समय से झाडौल जागीर के लोग होली के अवसर पर इस पहाड़ी पर एकत्र होकर होलिका दहन करते हैं. इसी पहाड़ी पर प्राचीन कमलनाथ महादेव मंदिर भी स्थित है. स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है  कि यही वह मंदिर है जहाँ रावण महादेव शिव की पूजा किया करता था. कहा जाता है की रावण भगवान शिव के चरणों में सौ कमल चढ़ाया करता था. लेकिन भगवान ब्रह्मा ने रावण की तपस्या को विफल करने के लिए एक कमल चुरा लिया था. महाबली रावण ने एक कमल कम होने की दशा में अपने सिर को ही आशुतोष भगवान् के चरणों में अर्पित कर दिया था. चित्तौड़  में होली के अवसर पर कमलनाथ महादेव मंदिर का पुजारी ही पहाड़ी पर जाकर होलिका दहन करता है. इसके बाद ही समस्त चित्तौड़ और झाडौल क्षेत्र में होलिका दहन किया जाता है. प्रतिवर्ष होली पर महाराणा के अनुयायी चित्तौड़ और झाडौल के स्वाभिमानी लोग इसी पहाड़ी पर एकत्र होकर होलिका दहन करते हैं . झाडौल के लोगों की होली देश के अन्य लोगों को प्रेरणा देती है, कि कैसे हम अपने त्यौहारों को मानते हुए अपने देश के गौरवशाली अतीत को याद रख सकते हैं. झाडौल और चित्तौड़ की वीर भूमि पर आज भी महाराणा प्रताप की यादें यहाँ के लोगों के जेहन में हैं. आज भी वे भारत गौरव महाराणा प्रताप की विरासत को सहेजे हुए हैं. जिसका एक जीवंत उदहारण यहाँ पर विशेष रूप से मनाई जाने वाली होली है.  
  

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