Monday, April 18, 2011

भारतीय संस्कृति का वैश्विक प्रचारक बौद्धमत



भारत की इस पुण्यभूमि पर विभिन्न धर्मों एवं मतों का उद्भव हुआजो कि समस्त विश्व में प्रसारित-प्रचारित हुए हैं. इनमें से ही एक हैबौद्ध मत जिसके अनुयायी संसार के लगभग सभी देशों में हैं. बौद्ध मत का उद्भव प्राचीन भारत के मगध राज्य में हुआ था. जहाँ से बौद्धमत पल्लवित होता हुआ समस्त संसार में प्रसारित हुआ. भारत से बाहर बौद्धमत ने श्रीलंकाचीनकम्बोडियामंगोलियाइंडोनेशियाथाईलैंडजापानभूटानविएतनामकोरिया आदि  देशों में अपनी जड़ें जमाई. बौद्ध मत का प्रसार एशिया ही नहीं पश्चिमी देशों में भी हुआ. भौतिकतावादी संस्कृति से दूर बौद्धमत कि अध्यात्मिक मान्यताओं ने पश्चिमी देशों के लोगों को विशेष तौर पर आकर्षित किया है. आज हम बात करेंगे ऑस्ट्रेलिया की जहाँ पर पर बौद्धमतईसाई मत के बाद दूसरा सबसे तेजी से प्रसारित होने वाला सम्प्रदाय है. 
                            सन १८४८ में बौद्धमत के कुछ अनुयायी चीन से ऑस्ट्रेलिया पहुंचे थेजिन्होनें दक्षिणी मेलबर्न में विशाल बौद्ध मंदिर का निर्माण भी करवाया था. बौद्धमत के अनुयायियों का इससे भी बड़ा जत्था सन १८६७ में जापान से पहुंचा थाजिनकी संख्या ३६०० थी. जापानी बौद्धों ने उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के थर्सडे आईलैंड को अपना ठिकाना बनाया. इसके बाद श्रीलंका के सिंहली बौद्ध भी सन 1870 ऑस्ट्रेलिया आ पहुंचेजिन्होनें गन्ना मिलों में काम किया. १९वीं सदी के अंत तक ऑस्ट्रेलिया में बौद्ध लोगों की तादाद काफी बढ़ चुकी थी. लेकिन २०वीं  सदी के प्रारंभ में ऑस्ट्रेलिया की श्वेत ऑस्ट्रेलियन नीति के कारण बौद्ध मतानुयायियों को वहां से पलायन करना पड़ा. जिसके बाद सन १८९१ में बौद्धमत एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया वापस लौटा. जब अमेरिकन बौद्ध हेनरी स्टील ऑस्ट्रेलिया आये और थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना कीऑस्ट्रेलिया के उच्चवर्गीय लोगों में इस दौरान बौद्ध मत का काफी प्रभाव बढ़ा. सन १९१० में पहले बौद्ध भिक्षु  सासन धजा बर्मा से ऑस्ट्रेलिया पहुंचेजिसके बाद एशिया के विभिन्न देशों से बौद्ध भिक्षु ऑस्ट्रेलिया पहुंचे. सन १९५३ में ऑस्ट्रेलिया में ''बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ़ विक्टोरिया'' का गठन हुआ और सन १९५६ में "बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ़ न्यू साउथ वेल्स" का गठन हुआ. 
                   सन १९७० में वियतनाम युद्ध के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया से बड़ी संख्या में बौद्ध लोग ऑस्ट्रेलिया पहुंचे. ऑस्ट्रेलिया में तिब्बती बौद्ध लोगों का प्रादुर्भाव सन १९७४ में हुआतिब्बती बौद्धों ने ऑस्ट्रेलिया में अपने २५ केंद्र स्थापित किये हैं. तिब्बती बौद्ध लोगों ने मेलबर्न के नजदीक बेन्दिगो नामक स्थान पर एक स्तूप का निर्माण करवाया हैजो समस्त विश्व को भारतीय संस्कृति के मूल सन्देश "वसुधैव कुटुम्बकम" का परिचय देता है. इस स्तूप का शिलान्यास भारत में निर्वासित जीवन जी रहे बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने ७ जूनसन २००७ को किया. इस स्तूप का व्यास ४८ मी. है और ऊंचाई ५० मी. है. सन २००७ में ऑस्ट्रेलिया पहुंचे दलाई लामा को ऑस्ट्रलियाई लोगों ने सिर आँखों पर बिठाया. ऑस्ट्रलियाई लोगों का कहना था कि "हमने ईसा को नहीं देखाभगवान बौद्ध को नहीं देखालेकिन हमारे बीच साक्षात् भगवान रूप में आये दलाई लामा के दर्शन हमें अवश्य करने चाहिए".  सन २००६ की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार बौद्धमत के लोगों की संख्या ऑस्ट्रेलिया में ईसाई लोगों के बाद दूसरे स्थान पर है. बौद्ध लोगों की संख्या का प्रतिशत ऑस्ट्रेलिया में २.१ प्रतिशत है. बौद्धमत वर्तमान दौर में ऑस्ट्रेलिया में सबसे तेजी से बढ़ता हुआ दूसरा धर्म है. भारत के मगध राज्य में पल्लवित हुए बौद्धमत ने भारतीय संस्कृति का एशिया के ही नहीं पश्चिमी के देशों में भी प्रचार किया है. 
              वर्तमान समय में जब नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रह हैभौतिकतावाद ने समस्त जीवन पद्धति को दुष्प्रभावित किया है. ऐसे समय में बौद्धमत प्रासंगिक और अनुकरणीय हैएशिया ही नहीं पश्चिम के राष्ट्रों ने भी भली-भांति समझने का प्रयास किया है. भौतिक संसाधनों के अत्यधिक उपभोग में लिप्त व्यक्ति को बौद्ध मत में "तनहा" की संज्ञा दी गयी है. "तनहा" की अवस्था में ही मनुष्य सामाजिक समरसता को छोड़ कर भटकाव की ओर अग्रसर हो जाता है. बौद्धमत ने समाज के लिए तर्क तथा सहिष्णुता को प्रमुख आवश्यकता बताया है. बौद्धमत ने समाज में सभी विभेदों को नकारते हुए समस्त विश्व को समतामूलक समाज की अवधारणा दी है. भूमंडलीकरण के वर्तमान दौर में साम्राज्यवादी देशों द्वारा विकासशील देशों को काबू में रखने के षड्यंत्रों का भी बौद्ध मत ने निदान सुझाया है. बौद्ध मतानुसार यदि विकासशील देश अपनी भौतिकता को त्याग देंतो भौतिकता   में आकंठ डूबे साम्राज्यवादी देश उन पर अपना प्रभुत्व नहीं जमा सकते हैं. 
              भारतीय संस्कृति को विश्व भर में प्रसारित करने में बौद्ध मत ने महती भूमिका निभायी है. बौद्धमत के विचारपरंपरा तथा जीवन दर्शन समस्त एशिया महाद्वीप में तो फैले ही साथ ही समस्त संसार में सामाजिक सहिष्णुता और समरसता का सन्देश प्रसारित किया. भारत में बौद्ध धर्म के विषय में बात करें तो महान सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में नौ धर्म प्रचारकों की मंडली को विश्व के अनेक भागों में बौद्ध मत का प्रचार करने के लिए भेजा. जिन्होनें ने दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भारतीय संस्कृति और दर्शन का प्रचार-प्रसार किया. समस्त विश्व में लोकप्रिय "लॉफिंग बुद्धा" और चीनी व्यायाम कला आदि भी बौद्ध मत की समस्त संसार को अमूल्य देन हैं. इसी इतिहास के कारण आज भी चीनी लोग भारत को बहुत सम्मान देते हैं. अंततः हम कह सकते हैं की भारतीय संस्कृति के अंग बौद्ध मत ने भारतीय संस्कृति से समस्त विश्व का परिचय कराने में महती भूमिका निभायी है. 


Thursday, April 14, 2011

राष्ट्र विधान निर्माता- भारत रत्न डॉ. बी. आर अम्बेडकर



संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर का आज जन्मदिवस है. डॉ. अम्बेडकर को आज हम लोगों की ओर से सच्ची श्रद्धांजलि क्या दी जा सकती है? यह हमारे लिए विचारनीय प्रश्न है. हमें आज अम्बेडकर के नाम पर सभा-सम्मलेन करने से पहले सोचने की आवश्यकता है कि हमने उनके आदर्शों को किस प्रकार धूमिल किया है. डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म १४ अप्रैल १८९१ को एक गरीब अस्पर्श्य  परिवार में हुआ था. डॉ. भीमराव अम्बेडकरने अपना समस्त जीवन हिन्दू  समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया. हिन्दू समाज में जाति-व्यवस्था जैसी कुप्रथा ही दलितों और वंचितों के शोषण का कारण थी. जिसके खिलाफ डॉ. अम्बेडकर आजीवन संघर्ष करते रहे. डॉ. अम्बेडकर ने ही दलितों और वंचितों को अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया. वंचितों के उत्थान के लिए डॉ. अम्बेडकर से महत्वपूर्ण योगदान शायद ही किसी अन्य महापुरूष का रहा होगा.
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अनुयायी कहलाने वाले आज देश में बहुत से लोग हैं.  लेकिन उनके आदर्शों से प्रेरणा लेकर समाज हितकारी कार्य करने वाला शायद ही कोई है? दरअसल डॉ. अम्बेडकर को समाज की एक निश्चित धारा से जोड़ दिया गया है. ऐसा करते हुए हमें याद रखना चाहिए की डॉ. अम्बेडकर किसी वर्ग विशेष की नहीं बल्कि समस्त भारत के वंचितों की आवाज थे. डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भारत के संविधान के माध्यम से समस्त भारतीय जाति के उत्थान के लिए उल्लेखनीय कार्य किये थे. ऐसे में उन्हें किसी वर्ग विशेष से जोड़ कर देखना भारतीय समाज के लिए दिए गए उनके योगदान को भूलने जैसा है. क्या डॉ. अम्बेडकर द्वारा हिन्दू कोड बिल के माध्यम से समस्त भारत की स्त्रियों के उत्थान के लिए किए गए कार्य को भुलाया जा सकता है?
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने ही हिन्दू कोड बिल में महिलाओं को उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता दिए जाने का प्रावधान किया था. क्या अम्बेडकर का हिन्दू कोड बिल किसी जाति विशेष की महिलाओं को अधिकार दिए जाने की बात करता है? डॉ. भीमराव अम्बेडकर के नाम से वर्तमान समय में राजनीतिक और सामजिक संगठनों का गठन जोरों पर है. लेकिन इन सभी संगठनों ने अम्बेडकर की जो छवि प्रस्तुत की है, उससे वंचितों की आवाज को तो बल नहीं मिला, लेकिन राष्ट्रविरोधी एजेंडा अवश्य तैयार हुआ है. जिसका केवल एक उदाहरण देना पर्याप्त होगा. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन दिनों एक नया राजनीतिक दल अस्तित्व में आया है. जिसका नाम भी अम्बेडकर समाज पार्टी रखा गया है. अम्बेडकर के नाम पर इस दल ने राष्ट्रविरोधी तत्वों के लिए जमीन तैयार करने का प्रयास किया है. जो कि इसके नारे से ही स्पष्ट होता है. इस पार्टी का नारा है अम्बेडकर जिंदाबाद, इस्लामवाद जिंदाबाद और औरंगजेब जिंदाबाद पार्टी का एजेंडा बताने के लिए यह नारा ही पर्याप्त है.
औरंगजेब नाम के जिस विदेशी आक्रान्ता ने भारत की सहिष्णुता को तहस-नहस करने का प्रयास किया था. उसके साथ राष्ट्र के संविधान निर्माता की तुलना करना कितना जायज है? क्या औरंगजेब के नाम से भारत के समाज में समानता आ सकती है? क्रूर आक्रान्ता की जय बोलने से किन वंचितों को अधिकार मिलते हैं यह समझ से परे है. लेकिन इस नारे से भारतमाता की गोद में खेल रहे राष्ट्रविरोधियों  का तुष्टिकरण अवश्य होता है. डॉ. अम्बेडकर के नाम से इस प्रकार का क्रूर मजाक उनके आदर्शों को तिलांजलि देने के सामान है. अम्बेडकर के नाम का इस्तेमाल करने वाले लोग उनके द्वारा जातिवाद विरोधी प्रयासों को तो जोर-शोर से प्रचारित करते हैं. लेकिन यह अकाट्य सत्य भूलने का भी असफल प्रयास करते हैं, की अम्बेडकर जातिवाद और मुस्लिम कट्टरवाद दोनों के ही खिलाफ थे.
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के जीवनी लेखक स्वर्गीय श्री सी.बी खैरमोड़े ने डॉ. अम्बेडकर के शब्दों को उद्धृत किया है- “मुझमें और सावरकर में इस प्रश्न पर न केवल सहमति है बल्कि सहयोग भी है कि हिन्दू समाज को एकजुट और संगठित किया जाये, और हिन्दुओं को अन्य मजहबों के आक्रमणों से आत्मरक्षा के लिए तैयार किया जाये” (ब्लिट्ज, १५ मई, १९९३ में उद्धृत). यह उदाहरण अम्बेडकर के प्रखर राष्ट्रवाद का बखूबी परिचय कराता है. दूसरा प्रचार जो इन राष्ट्रविरोधी तत्वों द्वारा किया जाता है, वह यह है कि डॉ. अम्बेडकर हिन्दू विरोधी थे. जो केवल एक मिथ्या प्रचार से अधिक कुछ भी नहीं है.
१३ अक्टूबर १९५६, को नागपुर में बौद्धमत में दीक्षा लेने से एक दिन पूर्व डॉ.अम्बेडकर ने एक संवाददाता सम्मलेन में बताया कि एक बार उन्होंने गांधीजी को कहा था कि यद्यपि वे उनसे छुआछूत मिटाने के प्रश्न पर मतभेद रखते हैं, पर समय आने पर “मैं वही मार्ग चुनूंगा जो देश के लिए सबसे कम हानिकर हो. मैं बौद्धमत में दीक्षित होकर देश को सबसे बड़ा लाभ पहुंचा रहा हूँ, क्योंकि बौद्धमत भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है.मैंने सावधानी बरती है कि मेरे पंथ-परिवर्तन से इस देश की संस्कृति और इतिहास को कोई हानि न पहुंचे”.(धनञ्जय कीर-कृत “अम्बेडकर- जीवन और लक्ष्य”, पृ. ४९८)
भारत रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर के बारे में यह सर्वविदित तथ्य साबित करता है कि वे राष्ट्र की हिन्दू संस्कृति और इतिहास के विषय में कितने संवेदनशील थे. इसलिए हम सभी के लिए आवश्यक है कि डॉ. अम्बेडकर के राष्ट्रवादी विचारों का समस्त राष्ट्र भर में प्रचार-प्रसार करें. ताकि भारत रत्न बी.आर अम्बेडकर की भारत नायक की छवि को कोई धूमिल करने का प्रयास न कर सके. हमारा यही प्रयास इस महुपुरुष के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी. 

Friday, April 8, 2011

परम वैभवशाली भारत



भारत देश की गिनती विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में होती है. भारत के नाम के बारे में कहा जाता है की प्राचीनहिन्दू राजा भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा. सम्राट भरत मनु के वंशज ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे.भारत(भा+रत) का अर्थ है आतंरिक प्रकाश, या विदेक रुपी प्रकाश में लीन. भारत की इस पुण्यभूमि को कई अन्य नामों से पुकारा जाता है जैसे- हिंदुस्तान, आर्यावर्त, जम्बूद्वीप आदि. भारतभूमि को “हिंदुस्तान” नाम प्राचीन समय में अरब के लोगों ने दिया था, जिसका अर्थ है “वह स्थान जहाँ हिन्दू जाति निवास करती है”. इसी प्रकार सेभारतभूमि को जम्बूद्वीप और आर्यावर्त जैसी संज्ञाओं से भी नवाजा गया है. भारत के अंग्रेजी नाम “इंडिया” कि उत्पत्ति “इंडस” शब्द से हुई, जो सिन्धु नदी का अंग्रेजी नामकरण है. भारतभूमि विश्व कि प्राचीनतम सभ्यताओं में है, जिसने आज भी अपनी सभ्यता और संस्कृति को संजोकर रखने का कार्य किया है. जिसके लिए कहा जाता है कि-
“यूनान, मिस्त्र, रोमां सब मिट गए जहाँ से,
क्या बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी.
आइये एक बार भारत के बारे में संक्षिप्त जानकारी लेते हैं, जिससे इस अतुल्यनीय भारत को समझने में आसानी हो सके. भारत दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा राष्ट्र है. समस्त विश्व में भारत का जनसँख्या के मामले में दूसरा स्थान है. क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है. भारत की सबसे बड़ी नदी जीवनदायिनी गंगा है, जिसमें लोग बड़े ही श्रद्धा भाव से डुबकी लगाते हैं.भारतीय  संस्कृति में नदियों का विशिष्ट स्थान रहा है, भारत के सभी प्रमुख शहर नदियों के किनारे ही बसे हैं. सिन्धु , नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, चम्बल,सतलज, व्यास आदि नदियाँभारत की प्रमुख नदियाँ हैं. भारत में तीन सौ से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं. भारत में विश्व के लगभग सभी प्रमुख देशों के लोग निवास करते हैं. जिनमें प्रमुख हैं हिन्दू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, यहूदी आदि.
भारत का भौगोलिक परिचय- 
भारत का कुल क्षेत्रफल- ३२,८७,,२६३ वर्ग कि.मी
उत्तर से दक्षिण तक कुल लम्बाई- ३,२१४ कि.मी
पूर्व से पश्चिम तक कुल चौड़ाई- २,९३३ कि.मी
अन्य देशों से लगी सीमायें- १५,२०० कि.मी
देश कि समुद्री सीमा- ७,५१६.६ कि.मी
भारत का भौगोलिक विस्तार ८ डिग्री ४ से ३७ डिग्री ६ उत्तरी अक्षांश और ६८ डिग्री ७ से ९७ डिग्री २५ पूर्वी देशांतर तक है. भारत की उत्तर-पश्चिम से अफगानिस्तान, पाकिस्तान उत्तर पूर्व से चीन, नेपाल और भूटान और पूर्व में बांग्लादेश और म्यांमार स्थित हैं. भारत के उत्तर में हिमालय और दक्षिण में हिंद महासागर है. हिंद महासागर में भारत के दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण पूर्व में इंडोनेशिया है. भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब महासागर है. भारत के बारे में कहा जाता है कि इसकी सीमायें प्रकृति द्वारा निर्मित हैं.
भारत की अर्थव्यवस्था-
भारत ने सन १९४७ में ब्रिटिश शासन से आजाद होने के बाद उल्लेखनीय प्रगति की है. भारत वर्तमान समय में विश्व की चौथी सबसे बड़ी और दूसरी सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है. सन १९९१ में हुए आर्थिक सुधारों के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने बहुत तेजी से अपने कदम बढ़ाये हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था ने वर्त्तमान समय में कृषि पर अपनी निर्भरता कम की है, देश के सकल घरेलू उत्पाद में केवल २५% हिस्सेदारी है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारतसॉफ्टवेयर और बीपीओ का सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरा है. चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. अमेरिका, जापान, संयुक्त अरब अमीरात और दक्षिण कोरिया भी भारत के महत्वपूर्ण व्यापारिक साझीदार हैं. भारत के निर्यातों में कृषि उत्पाद, चाय, कपडा, बहुमूल्य रत्न व आभूषण, सॉफ्टवेयर सेवाएं, इंजीनियरिंग, रसायन तथा चमड़ा उत्पाद आदि प्रमुख हैं. भारत कच्चा तेल और मशीनरी का प्रमुख आयातक देश है. पिछले वर्षों में आई मंदी के दौरान भी भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपने को बचाए रखा जिस वक़्त विश्व की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थायें मंदी के दौर से गुजर रही थीं. यह घटनाक्रम भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूत स्थिति का बखूबी परिचय देता है. संक्षिप्त में कहा जाये तो वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर तेजी से अपने कदम बढ़ा रही है.
भारत की संस्कृति- भारत की संस्कृति विश्व की सबसे समृद्ध संस्कृतियों में से एक है. भारत की संस्कृति ने आज भी अपने कई आयामों को जस का तस संजोकर रखा हुआ है. यही भारत की सांस्कृतिक एकता का कारण भी है.भारतीय संस्कृति एक ऐसी संस्कृति है जिसने विश्व भर से आने वाले लोगों को बखूबी अपने में समेटे रखा है. भारतकी संस्कृति सही मायनों में वैश्विकता को धारण करने वाली संस्कृति है, जिसने ‘वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना को आत्मसात किया है. भारतीय संस्कृति एक मिश्रित संस्कृति है जिसमें आक्रमणकारी के रूप में आने वाले लोग भी समां चुके हैं. भारतीय संस्कृति की यही खूबी है की यहाँ पर सभी लोग एक भारतीय के तौर पर एक हैं चाहे वे किसी भी मजहब के लोग हों. भारतीय संस्कृति में कहा भी गया है कि-
उत्तरं यत समुद्रस्य, हिमाद्रेश्चैव दक्षिणं.
वर्ष तद भारतं, नाम भारती यत्र संतति.
अर्थात जिसके उत्तर में हिमालय और दक्षिण में समुद्र है, वह पुण्यभूमि भारत है और यहाँ रहने वाले लोग भारतीय हैं.भारतीय संस्कृति में यह बात पूरो तरह से रची-बसी हुई है. यहाँ पर रहने वाले विभिन्न मजहबों के लोगों में गजब कि राष्ट्रीय एकता है. आधुनिक भारत का समाज, भाषाएँ, रीति-रिवाज आदि इसका प्रमाण हैं. भारतीय समाज बहुभाषी, बहुधार्मिक तथा मिश्रसांस्कृतिक है. यहाँ विभिन्न धर्मों के कई मन-भावन पर्व-त्यौहार धूमधाम से मनाये जाते हैं. दिवाली, दशहरा, होली, पोंगल तथा ओणम आदि भारत में प्रमुख त्यौहार हैं. ईद, मुहर्रम, क्रिसमस, ईस्टर आदि भी काफी लोकप्रिय हैं. भारतीय संस्कृति में लगभग सभी त्यौहार कृषि पर आधारित हैं या पौराणिक मान्यताओं पर.
भारतीय कला और नृत्य के क्षेत्र में भी बहुत वैभवशाली रहा है. भारत में संगीत तथा नृत्य कि अपनी शैलियाँ हैं, जो कि बहुत विकसित और लोकप्रिय हैं. भरतनाट्यम, ओडिशी, कत्थक आदि प्रसिद्ध नाट्य शैलियाँ हैं. हिन्दुस्तानी संगीत तथा कर्णाटक संगीत भारतीय संगीत कि दो प्रमुख धाराएँ हैं. संक्षिप्त में कहा जाये तो भारतीय संस्कृति का इतिहास बहुत ही अनुपम और वैभवशाली रहा है.
भारत के प्राकृतिक संसाधन- कोयला, कच्चा लोहा, मैगनीज, पेट्रोलियम, टाईटेनियम, क्रोमाआईट, प्राकृतिक गैस, मैगनेसाइट, चूना पत्त्थर, जिप्सम, फ्लोराईट आदि भारत के प्रमुख प्राकृतिक संसाधन हैं.
भारत के कृषि उत्पाद-  भारत में चावल, गेहूं, चाय, कपास, गन्ना, आलू, जूट, दालें आदि. भारत के प्रमुख कृषि उत्पाद हैं. जिनके उत्पादन में भारत का अग्रणी स्थान है.
भारत का मौसम-
भारत के अधिकतर उत्तरी और उत्तरपश्चिमीय प्रांत हिमालय की पहाङियों में स्थित हैं। शेष का उत्तरी, मध्य और पूर्वी भारत गंगा के उपजाऊ मैदानों से बना है। उत्तरी-पूर्वी पाकिस्तान से सटा हुआ, भारत के पश्चिम में थार का मरुस्थल है। दक्षिण भारत लगभग संपूर्ण ही दक्खन के पठार से निर्मित है। यह पठार पूर्वी और पश्चिमी घाटों के बीच स्थित है।
कई महत्वपूर्ण और बड़ी नदियाँ जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, गोदावरी और कृष्णा भारत से होकर बहती हैं। इन नदियों के कारण उत्तर भारत की भूमि कृषि के लिए उपजाऊ है।
भारत के विस्तार के साथ ही इसके मौसम में भी बहुत भिन्नता है। दक्षिण में जहाँ तटीय और गर्म वातावरण रहता है वहीं उत्तर में कड़ी सर्दी, पूर्व में जहाँ अधिक बरसात है वहीं पश्चिम में रेगिस्तान की शुष्कता। भारत में वर्षा मुख्यतया मानसून हवाओं से होती है।
भारत कि इस पुण्यभूमि को प्रकृति ने भली-भांति सजाया संवारा है. भारत ही विश्व में एकमात्र ऐसा देश है जिसकी सीमायें प्रकृति द्वारा निर्मित हैं. भारत को देवनिर्मित राष्ट्र भी कहा जाता है. कहा गया है कि-
हिमालयात समारभ्य यावादिन्दुसरोवरम,
तम देव निर्मितं देशं हिन्दुस्थानम प्रचक्षते.
यह देव निर्मित राष्ट्र अनंत काल से विश्व गुरु के रूप में विद्यमान रहा है. वर्तमान समय में सन १९४७ में स्वतंत्र होने के बाद से ही भारत एक राष्ट्र के रूप में नित नए आयामों कि ओर बढ़ रहा है. दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारत सबसे बड़ा राष्ट्र है. विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत विकसित राष्ट्र बनने से बस कुछ ही कदम दूरी पर है. विश्व का सबसे युवा राष्ट्र भारत जल्द ही विश्व का एक बार फिर सिरमौर बनेगा. यदि भारत और भारतीय इसी प्रकार अपनी प्रतिभा का परिचय समस्त विश्व को देते रहे. इस कि घोषणा भारत ही नहीं भारत दौरे पर आने वाले कई राष्ट्राध्यक्षों ने कि है कि आने वाला समय भारत और भारत के लोगों का ही है. अर्थात विश्व गुरु भारत अब पुनः अंगड़ाई लेने लगा है, और परम वैभव को पाने कि ओर अग्रसरित है.

सफल होगी अन्ना की लड़ाई !



दिल्ली के जंतर-मंतर पर जन लोकपाल विधेयक की मांग में तीन दिनों से अनशन कर रहे अन्ना हजारे की मुहीम रंग लाने लगी है.  देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में सरकारी लोकपाल विधेयक को अन्ना ने नाकाफी बताया है. सरकारी लोकपाल विधेयक के स्थान पर अन्ना जन लोकपाल विधेयक को लोकसभा में पारित किये जाने की मांग पर अड़े हैं. वास्तव में सरकारी लोकपल विधेयक भ्रष्टाचार से निपटने का एक मारक हथियार हो भी नहीं सकता. सरकारी लोकपाल विधेयक के प्रावधान भ्रष्टाचार से लड़ने की मुहीम में आम आदमी के लिए कोई सहारा नहीं बन सकते हैं. इस विधेयक में एक भी ऐसा प्रावधान नहीं है जो भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में निगरानी का कार्य कर सके.
सरकारी लोकपाल विधेयक के तहत लोकपाल सीधे जनता की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है. लोकपाल के पास कोई पुलिस शक्ति भी नहीं होगी. लेकिन इसमें आम आदमी को भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई से रोकने के लिए शिकायत झूठी पाए जाने पर उसे जेल भेजने का प्रावधान अवश्य है. सरकारी लोकपाल के दायरे में देश के प्रधानमंत्री नहीं होंगे, जो कई मामलों में भ्रष्टाचारियों के संरक्षणकर्ता के रूप में सामने आये हैं. ऐसे में अन्ना हजारे का जनलोकपाल विधेयक जनता के लिए भ्रष्टाचार के अँधेरे में एक नई रौशनी के समान है. अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक पत्थर उछालने का प्रयास किया है. जो भ्रष्टाचार रुपी आसमान में छेद करके ही वापस लौटने वाला है.
भ्रष्टाचार को लेकर पिछले वर्ष से ही देश भर में आवाजें उठती रही हैं. लेकिन इनको वह व्यापक समर्थन नहीं मिल पाया, जितने की दरकार थी. इसका कारण यह था कि देश भर में भ्रष्टाचार को लेकर लड़ाई लड़ने वाले खुद ही कहीं न कहीं भ्रष्टाचार में लिप्त थे. जिसके कारण सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों  पर ही कई अनुत्तरित सवाल दाग दिए. इसमें देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा भी शामिल है जिसके द्वारा शासित राज्यों में भी भ्रष्टाचार ही प्रमुख मुद्दा है. ऐसे में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज एक भ्रष्टाचारी ही उठाएगा तो उसको व्यापक जन समर्थन तो मिलने से रहा. इसी प्रकार से योग गुरु बाबा रामदेव भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के अगुआ बनकर उभरे. उन्होंने तो राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान तक कर डाला. जिस जनता को राजनीति ने ही त्रस्त कर रखा है, उसके सामने बाबा एक और पार्टी लाने की तैयारी में हैं. इसके अलावा कांग्रेस पार्टी ने बाबा को राजनीति से दूर रहने की सलाह दी, जिसका आम लोगों तक व्यापक प्रभाव पहुंचा.
दरअसल देश की जो वर्तमान परिस्थिति है, उसमें कोई भी राजनीतिक पार्टी जनता के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प नहीं है. इसका कारण देश में भ्रष्टाचार का सांस्थानिक हो जाना है. भ्रष्टाचार से लड़ाई इस वक़्त वही व्यक्ति लड़ सकता है जो स्वयं उस कीचड़ से दूर है. भ्रष्टाचार की लड़ाई में बाबा रामदेव के कदम ठिठक गए, क्योंकि उन पर स्वयं भ्रष्टाचार का धन एकत्र करने के आरोप लगने लगे. ऐसे में वरिष्ठ समाजसेवी अन्ना हजारे भ्रष्टाचार की मुहीम के सर्वमान्य अगुआ हो सकते हैं. वह भ्रष्टाचार जैसे किसी भी आरोप से दूर हैं. अन्ना हजारे की स्वच्छ छवि का ही करिश्मा है कि उन्हें देश भर में व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है. जंतर-मंतर पर उनके साथ आमरण अनशन में शामिल होने वालों की संख्या लगातार बढती जा रही है. जिससे भ्रष्टाचारी सरकार के कान खड़े हो गए हैं.
आन्दोलन के चलते सरकार के सबसे विवादित चेहरे शरद पवार ने भ्रष्टाचार पर गठित मंत्रिसमूह से दामन छुड़ा लिया है. हजारे के प्रति सरकार की खीझ का परिणाम यह है कि उसके प्रवक्ताओं ने हजारे पर अनर्गल आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं. जहाँ कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि “अन्ना को कुछ लोगों ने अनशन के लिए उकसाया है”. दूसरी तरफ प्रवक्ता जयंती नटराजन का कहना है कि अन्ना का अनशन का फैसला जल्दबाजी में उठाया गया कदम है. यह सभी आरोप सरकार की निराशा और भय का परिणाम है.
परिस्थितियों को देख ऐसा लगता नहीं कि सरकारी प्रवक्ताओं द्वारा अन्ना पर लगाये गए आरोपों से भ्रष्टाचार की लड़ाई कमजोर होगी. बल्कि, सरकार के नकारापन ने आम जनता के गुस्से को और भड़काने का ही काम किया है. भ्रष्टाचार के इस देशव्यापी अँधेरे में अन्ना की मुहीम एक उजली किरण के समान है. जिसमें जनता सरकार को उसका असली चेहरा दिखाकर ही दम लेगी.

Monday, April 4, 2011

हिन्दू नववर्ष का शुभागमन



आज ४ अप्रैल २०११ से हिन्दू नववर्ष एवं विक्रम शक संवत्सर २०६८ का आरंभ हो रहा है. हिन्दू नववर्ष के आरंभ के साथ ही नवरात्र भी प्रारंभ हो जाते हैं. बसंत ऋतु के आगमन का संकेत मिलने लगता है, और वातावरण खुशनुमा एहसास कराता है. हिन्दू नववर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है. ब्रह्मा पुराण के अनुसार सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन हुआ था. इसी दिन से ही काल गणना का प्रारंभ हुआ था. सतयुग का प्रारंभ भी इसी दिन से माना जाता है.


विक्रमी संवत के अनुसार सृष्टि चक्र और काल गणना
हिन्दू काल गणना में समय की सटीक माप की गयी है.
       समय का पैमाना
निमिष-  समय की पलक झपकने बराबर सूक्ष्म इकाई
१५ निमिष- १ कस्त
३० कस्त- १ काल
३० मुहूर्त - १ अहोरात्र(एक दिन)
४३,२०,००० वर्ष- १२,००० ब्रह्मा वर्ष(महायुग)
   चार युग- कलियुग- १ गुणा ४३२०००
          द्वापर युग- २ गुणा ४३२०००
          त्रेता युग - ३ गुणा ४३२०००
          सतयुग-  ४ गुणा ४३२०००
कुल- १० गुणा ४३२०,०००
=४३२०,०००(महायुग)
७१ महायुग- १ मन्वंतर
१००० महायुग- १ कल्प(४,३२,००,००० वर्ष)
१ कल्प- ब्रह्मा १ दिन
ब्रह्मा अहोरात्र- ८,६४,००,००,००० वर्ष


ब्रह्मा पुराण में कहा गया है कि-
चैत्र मासे जगदब्रह्मा समग्रे प्रथमेअनि.
शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदय सति.
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्व है. इस दिन का भारत के स्वर्णिम इतिहास में उल्लेखनीय महत्व है.
१. इसी दिन महाराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था.
२.महान संत झूलेलाल जयंती.
३.संघ संस्थापक डॉ.हेडगेवार का जन्म.
४.भगवान् राम का राज्याभिषेक.
५. आर्यसमाज की स्थापना.
यह सभी महत्वपूर्ण घटनाएँ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही घटित हुई थी. जिसके कारण यह पवित्र दिवस हमारी संस्कृति में और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है. विक्रम शक संवत्सर का आरंभ महान सम्राट विक्रमादित्य ने शकों और हूणों को परास्त करने के पश्चात किया था. विक्रमादित्य ने उत्तर और उत्तर पश्चिम से भारत पर बर्बर आक्रमण करने वाले शकों और हूणों को खदेड़ा तथा देश को निजात दिलाई थी. पारस कुश से आये ये आक्रमणकारी सिंध के रास्ते सौराष्ट्र, गुजरात तथा महाराष्ट्र तक में फैल गए थे. जिसके बाद शकों ने पवित्र उज्जयनी पर आक्रमण कर पूर्णतः विध्वंस कर दिया. शकों ने अपने साम्राज्य का विस्तार मथुरा तथा विदिशा तक कर लिया था. शकों के अत्याचार से निजात दिलाने के लिए मालवा के शासक विक्रमादित्य के नेतृत्व में शक्ति उठ खड़ी हुई. सम्राट विक्रमादित्य का जन्म पवित्र उज्जयनी नगरी में हुआ था. इनके पिता का नाम महेन्द्रादित्य गणनायक तथा माता का नाम मलयवती था.
विक्रमादित्य ने शकों को अपने पराक्रम का परिचय देते हुए उन्हें सिंध के तट तक  खदेड़ा और सिंध के नजदीक करुर नामक स्थान पर लड़ाई लड़ी. इस लड़ाई में शकों ने विक्रमादित्य से अपनी पराजय स्वीकार की. विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व ५७ में शकों को उनके गढ़ अरब में भी परास्त किया. अरब विजय करने के पश्चात् विक्रमादित्य ने मक्का में महाकाल भगवान् शिव का मंदिर बनवाया. आन्ध्र प्रदेश में युगाधि तिथि कहकर इस सत्य की उदघोषणा की जाती है.
शकों को भारत से खदेड़ने के पश्चात् विक्रमादित्य ने एक नए युग का सूत्रपात किया. तत्कालीन कवियों और इतिहासकारों ने विक्रम के राज्य और उसकी नीतियों को जमकर सराहा है.
अरबी कवि जिरहाम किनतोई ने अपनी पुस्तक “शायर-उल-ओकुल” में लिखा है “वे लोग धन्य हैं जो महान सम्राटविक्रमादित्य के राज में जन्मे हैं”. विक्रमादित्य की शासन व्यवस्था हिन्दू राजा पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल तक चली.
संसार में वैसे तो विभिन्न प्रकार के कैलेंडर मौजूद हैं. लेकिन विक्रम शक संवत्सर सबसे प्रमाणिक है. सूर्य सिद्धांत का मान गणित, त्योहारों की परिकल्पना, सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण का गणित इसी संवत्सर से निकलता है. यहाँ तक की अमेरिका के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र में भी जब सेकंड के सौवें हिस्से की भी गणना करने की आवश्यकता होती है, तो विक्रम शक संवत्सर की सहायता ही ली जाती है. विश्व की सबसे प्रमाणिक काल गणना विक्रमी शक संवत्सर के कैलेंडर से ही हो सकती है.
आधुनिक सभ्यता की अंधी दौड़ में समाज का एक वर्ग इस पुण्य दिवस को विस्मृत कर चुका है. उनके लिए आवश्यक है, की इस दिन के इतिहास के बारे में वे जानकारी लेकर प्रेरणा लेने का कार्य करें. भारतीय संस्कृति की पहचान विक्रमी शक संवत्सर में है, न कि अंग्रेजी नववर्ष से. हमारा स्वाभिमान विक्रमी संवत्सर को मनाने से ही जाग्रत हो सकता है, न कि रात भर झूमकर एक जनवरी की सुबह सो जाने से. इसका सशक्त उदाहरण पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का यह कथन है, जिसे उन्होंने १ जनवरी को मिले शुभकामना सन्देश के जवाब में कहा था. “मेरे देश का सम्मान वीर विक्रमी नव संवत्सर से है, १ जनवरी ग़ुलामी की दास्तान है.