Friday, April 8, 2011

सफल होगी अन्ना की लड़ाई !



दिल्ली के जंतर-मंतर पर जन लोकपाल विधेयक की मांग में तीन दिनों से अनशन कर रहे अन्ना हजारे की मुहीम रंग लाने लगी है.  देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में सरकारी लोकपाल विधेयक को अन्ना ने नाकाफी बताया है. सरकारी लोकपाल विधेयक के स्थान पर अन्ना जन लोकपाल विधेयक को लोकसभा में पारित किये जाने की मांग पर अड़े हैं. वास्तव में सरकारी लोकपल विधेयक भ्रष्टाचार से निपटने का एक मारक हथियार हो भी नहीं सकता. सरकारी लोकपाल विधेयक के प्रावधान भ्रष्टाचार से लड़ने की मुहीम में आम आदमी के लिए कोई सहारा नहीं बन सकते हैं. इस विधेयक में एक भी ऐसा प्रावधान नहीं है जो भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में निगरानी का कार्य कर सके.
सरकारी लोकपाल विधेयक के तहत लोकपाल सीधे जनता की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है. लोकपाल के पास कोई पुलिस शक्ति भी नहीं होगी. लेकिन इसमें आम आदमी को भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई से रोकने के लिए शिकायत झूठी पाए जाने पर उसे जेल भेजने का प्रावधान अवश्य है. सरकारी लोकपाल के दायरे में देश के प्रधानमंत्री नहीं होंगे, जो कई मामलों में भ्रष्टाचारियों के संरक्षणकर्ता के रूप में सामने आये हैं. ऐसे में अन्ना हजारे का जनलोकपाल विधेयक जनता के लिए भ्रष्टाचार के अँधेरे में एक नई रौशनी के समान है. अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक पत्थर उछालने का प्रयास किया है. जो भ्रष्टाचार रुपी आसमान में छेद करके ही वापस लौटने वाला है.
भ्रष्टाचार को लेकर पिछले वर्ष से ही देश भर में आवाजें उठती रही हैं. लेकिन इनको वह व्यापक समर्थन नहीं मिल पाया, जितने की दरकार थी. इसका कारण यह था कि देश भर में भ्रष्टाचार को लेकर लड़ाई लड़ने वाले खुद ही कहीं न कहीं भ्रष्टाचार में लिप्त थे. जिसके कारण सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों  पर ही कई अनुत्तरित सवाल दाग दिए. इसमें देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा भी शामिल है जिसके द्वारा शासित राज्यों में भी भ्रष्टाचार ही प्रमुख मुद्दा है. ऐसे में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज एक भ्रष्टाचारी ही उठाएगा तो उसको व्यापक जन समर्थन तो मिलने से रहा. इसी प्रकार से योग गुरु बाबा रामदेव भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के अगुआ बनकर उभरे. उन्होंने तो राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान तक कर डाला. जिस जनता को राजनीति ने ही त्रस्त कर रखा है, उसके सामने बाबा एक और पार्टी लाने की तैयारी में हैं. इसके अलावा कांग्रेस पार्टी ने बाबा को राजनीति से दूर रहने की सलाह दी, जिसका आम लोगों तक व्यापक प्रभाव पहुंचा.
दरअसल देश की जो वर्तमान परिस्थिति है, उसमें कोई भी राजनीतिक पार्टी जनता के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प नहीं है. इसका कारण देश में भ्रष्टाचार का सांस्थानिक हो जाना है. भ्रष्टाचार से लड़ाई इस वक़्त वही व्यक्ति लड़ सकता है जो स्वयं उस कीचड़ से दूर है. भ्रष्टाचार की लड़ाई में बाबा रामदेव के कदम ठिठक गए, क्योंकि उन पर स्वयं भ्रष्टाचार का धन एकत्र करने के आरोप लगने लगे. ऐसे में वरिष्ठ समाजसेवी अन्ना हजारे भ्रष्टाचार की मुहीम के सर्वमान्य अगुआ हो सकते हैं. वह भ्रष्टाचार जैसे किसी भी आरोप से दूर हैं. अन्ना हजारे की स्वच्छ छवि का ही करिश्मा है कि उन्हें देश भर में व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है. जंतर-मंतर पर उनके साथ आमरण अनशन में शामिल होने वालों की संख्या लगातार बढती जा रही है. जिससे भ्रष्टाचारी सरकार के कान खड़े हो गए हैं.
आन्दोलन के चलते सरकार के सबसे विवादित चेहरे शरद पवार ने भ्रष्टाचार पर गठित मंत्रिसमूह से दामन छुड़ा लिया है. हजारे के प्रति सरकार की खीझ का परिणाम यह है कि उसके प्रवक्ताओं ने हजारे पर अनर्गल आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं. जहाँ कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि “अन्ना को कुछ लोगों ने अनशन के लिए उकसाया है”. दूसरी तरफ प्रवक्ता जयंती नटराजन का कहना है कि अन्ना का अनशन का फैसला जल्दबाजी में उठाया गया कदम है. यह सभी आरोप सरकार की निराशा और भय का परिणाम है.
परिस्थितियों को देख ऐसा लगता नहीं कि सरकारी प्रवक्ताओं द्वारा अन्ना पर लगाये गए आरोपों से भ्रष्टाचार की लड़ाई कमजोर होगी. बल्कि, सरकार के नकारापन ने आम जनता के गुस्से को और भड़काने का ही काम किया है. भ्रष्टाचार के इस देशव्यापी अँधेरे में अन्ना की मुहीम एक उजली किरण के समान है. जिसमें जनता सरकार को उसका असली चेहरा दिखाकर ही दम लेगी.

No comments:

Post a Comment