Thursday, April 14, 2011

राष्ट्र विधान निर्माता- भारत रत्न डॉ. बी. आर अम्बेडकर



संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर का आज जन्मदिवस है. डॉ. अम्बेडकर को आज हम लोगों की ओर से सच्ची श्रद्धांजलि क्या दी जा सकती है? यह हमारे लिए विचारनीय प्रश्न है. हमें आज अम्बेडकर के नाम पर सभा-सम्मलेन करने से पहले सोचने की आवश्यकता है कि हमने उनके आदर्शों को किस प्रकार धूमिल किया है. डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म १४ अप्रैल १८९१ को एक गरीब अस्पर्श्य  परिवार में हुआ था. डॉ. भीमराव अम्बेडकरने अपना समस्त जीवन हिन्दू  समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया. हिन्दू समाज में जाति-व्यवस्था जैसी कुप्रथा ही दलितों और वंचितों के शोषण का कारण थी. जिसके खिलाफ डॉ. अम्बेडकर आजीवन संघर्ष करते रहे. डॉ. अम्बेडकर ने ही दलितों और वंचितों को अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया. वंचितों के उत्थान के लिए डॉ. अम्बेडकर से महत्वपूर्ण योगदान शायद ही किसी अन्य महापुरूष का रहा होगा.
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अनुयायी कहलाने वाले आज देश में बहुत से लोग हैं.  लेकिन उनके आदर्शों से प्रेरणा लेकर समाज हितकारी कार्य करने वाला शायद ही कोई है? दरअसल डॉ. अम्बेडकर को समाज की एक निश्चित धारा से जोड़ दिया गया है. ऐसा करते हुए हमें याद रखना चाहिए की डॉ. अम्बेडकर किसी वर्ग विशेष की नहीं बल्कि समस्त भारत के वंचितों की आवाज थे. डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भारत के संविधान के माध्यम से समस्त भारतीय जाति के उत्थान के लिए उल्लेखनीय कार्य किये थे. ऐसे में उन्हें किसी वर्ग विशेष से जोड़ कर देखना भारतीय समाज के लिए दिए गए उनके योगदान को भूलने जैसा है. क्या डॉ. अम्बेडकर द्वारा हिन्दू कोड बिल के माध्यम से समस्त भारत की स्त्रियों के उत्थान के लिए किए गए कार्य को भुलाया जा सकता है?
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने ही हिन्दू कोड बिल में महिलाओं को उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता दिए जाने का प्रावधान किया था. क्या अम्बेडकर का हिन्दू कोड बिल किसी जाति विशेष की महिलाओं को अधिकार दिए जाने की बात करता है? डॉ. भीमराव अम्बेडकर के नाम से वर्तमान समय में राजनीतिक और सामजिक संगठनों का गठन जोरों पर है. लेकिन इन सभी संगठनों ने अम्बेडकर की जो छवि प्रस्तुत की है, उससे वंचितों की आवाज को तो बल नहीं मिला, लेकिन राष्ट्रविरोधी एजेंडा अवश्य तैयार हुआ है. जिसका केवल एक उदाहरण देना पर्याप्त होगा. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन दिनों एक नया राजनीतिक दल अस्तित्व में आया है. जिसका नाम भी अम्बेडकर समाज पार्टी रखा गया है. अम्बेडकर के नाम पर इस दल ने राष्ट्रविरोधी तत्वों के लिए जमीन तैयार करने का प्रयास किया है. जो कि इसके नारे से ही स्पष्ट होता है. इस पार्टी का नारा है अम्बेडकर जिंदाबाद, इस्लामवाद जिंदाबाद और औरंगजेब जिंदाबाद पार्टी का एजेंडा बताने के लिए यह नारा ही पर्याप्त है.
औरंगजेब नाम के जिस विदेशी आक्रान्ता ने भारत की सहिष्णुता को तहस-नहस करने का प्रयास किया था. उसके साथ राष्ट्र के संविधान निर्माता की तुलना करना कितना जायज है? क्या औरंगजेब के नाम से भारत के समाज में समानता आ सकती है? क्रूर आक्रान्ता की जय बोलने से किन वंचितों को अधिकार मिलते हैं यह समझ से परे है. लेकिन इस नारे से भारतमाता की गोद में खेल रहे राष्ट्रविरोधियों  का तुष्टिकरण अवश्य होता है. डॉ. अम्बेडकर के नाम से इस प्रकार का क्रूर मजाक उनके आदर्शों को तिलांजलि देने के सामान है. अम्बेडकर के नाम का इस्तेमाल करने वाले लोग उनके द्वारा जातिवाद विरोधी प्रयासों को तो जोर-शोर से प्रचारित करते हैं. लेकिन यह अकाट्य सत्य भूलने का भी असफल प्रयास करते हैं, की अम्बेडकर जातिवाद और मुस्लिम कट्टरवाद दोनों के ही खिलाफ थे.
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के जीवनी लेखक स्वर्गीय श्री सी.बी खैरमोड़े ने डॉ. अम्बेडकर के शब्दों को उद्धृत किया है- “मुझमें और सावरकर में इस प्रश्न पर न केवल सहमति है बल्कि सहयोग भी है कि हिन्दू समाज को एकजुट और संगठित किया जाये, और हिन्दुओं को अन्य मजहबों के आक्रमणों से आत्मरक्षा के लिए तैयार किया जाये” (ब्लिट्ज, १५ मई, १९९३ में उद्धृत). यह उदाहरण अम्बेडकर के प्रखर राष्ट्रवाद का बखूबी परिचय कराता है. दूसरा प्रचार जो इन राष्ट्रविरोधी तत्वों द्वारा किया जाता है, वह यह है कि डॉ. अम्बेडकर हिन्दू विरोधी थे. जो केवल एक मिथ्या प्रचार से अधिक कुछ भी नहीं है.
१३ अक्टूबर १९५६, को नागपुर में बौद्धमत में दीक्षा लेने से एक दिन पूर्व डॉ.अम्बेडकर ने एक संवाददाता सम्मलेन में बताया कि एक बार उन्होंने गांधीजी को कहा था कि यद्यपि वे उनसे छुआछूत मिटाने के प्रश्न पर मतभेद रखते हैं, पर समय आने पर “मैं वही मार्ग चुनूंगा जो देश के लिए सबसे कम हानिकर हो. मैं बौद्धमत में दीक्षित होकर देश को सबसे बड़ा लाभ पहुंचा रहा हूँ, क्योंकि बौद्धमत भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है.मैंने सावधानी बरती है कि मेरे पंथ-परिवर्तन से इस देश की संस्कृति और इतिहास को कोई हानि न पहुंचे”.(धनञ्जय कीर-कृत “अम्बेडकर- जीवन और लक्ष्य”, पृ. ४९८)
भारत रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर के बारे में यह सर्वविदित तथ्य साबित करता है कि वे राष्ट्र की हिन्दू संस्कृति और इतिहास के विषय में कितने संवेदनशील थे. इसलिए हम सभी के लिए आवश्यक है कि डॉ. अम्बेडकर के राष्ट्रवादी विचारों का समस्त राष्ट्र भर में प्रचार-प्रसार करें. ताकि भारत रत्न बी.आर अम्बेडकर की भारत नायक की छवि को कोई धूमिल करने का प्रयास न कर सके. हमारा यही प्रयास इस महुपुरुष के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी. 

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