Thursday, July 14, 2011

“न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड” के बंद होने का सबक



पत्रकारिता का कर्तव्य होता है राष्ट्रीय और सामजिक महत्व की सूचनाओं का संकलन कर लोगों तक पहुँचाना. पत्रकारिता का कार्य समाज और राष्ट्र को हानि पहुँचाने वाले तत्वों की स्पष्ट जानकारी देकर समाज को जागृत करना भी है. इसके लिए खोजी पत्रकारिता भी करनी पड़ती है, जिसमें पत्रकार को जासूस जैसा काम भी करना पड़ता है. खोजी पत्रकारिता ने विभिन्न देशों में महत्वपूर्ण मामलों का पर्दाफाश कर जनता को वास्तविक सच्चाई से रूबरू कराया है. खोजी पत्रकारिता, पत्रकारिता की ऐसी विधा है. जिसका उपयोग समाज हित के लिए किया ही जाना चाहिए. लेकिन खोजी पत्रकारिता उस समय अपने उद्देश्य से भटक जाती है, जब पत्रकार किसी व्यक्ति के निजी जीवन से भी एक्सक्लूसिव स्टोरी निकलने का प्रयास करने लगता है. इसका ही एक समसामयिक उदहारण है “न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड” साप्ताहिक पत्र का बंद होना.
“न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड” ब्रिटेन का १६८ वर्ष पुराना साप्ताहिक टैबलायड है. यह टैबलायड मीडिया के बड़े कारोबारी रूपर्ट मर्डोक का है. अकेले ब्रिटेन में ही उनके “द टाइम्स” और “द सन” जैसे चार प्रतिष्ठित अखबार हैं जबकि यूरोप, अमेरिका और एशिया में उनके कई टीवी चैनल और अखबार हैं. “न्यूज ऑफ द वर्ल्ड” की प्रसार संख्या २७ लाख है और इसका मुनाफा भी मोटा है. इस पत्र की पहचान ब्रिटिश लोगों के बीच अनूठी और सनसनी वाली ख़बरों को दिखाने की रही है. इस पत्र के पत्रकार सेलिब्रिटी एवं अन्य लोकप्रिय लोगों के निजी जीवन को भी एक्सक्लूसिव स्टोरी की तरह से दिखाते थे. इन पत्रकारों से तो सेलिब्रिटी बचने के लिए भागते थे. इसी तरह से भागने के चक्कर में ब्रिटेन की राजकुमारी डायना अपने प्रेमी डोडी-अल फयाद के साथ एक कार दुर्घटना में मारी गयी थी.
रूपर्ट मर्डोक के अख़बार ने सनसनीखेज ख़बरों को दिखाने के लिए ख़बरें नहीं अश्लील मनोरंजन परोसना शुरू कर दिया. मीडिया के बाजार में टैबलायड का धंधा एक्सक्लूसिव ख़बरों और अश्लील चित्रों के बल पर चलता है. बाजार में पकड़ बनाने के इस जूनून में रूपर्ट मर्डोक ने पत्रकारिता के नैतिक कर्तव्य और उद्देश्य को ही ताक पर रख दिया. अखबार की बढ़ती प्रसार संख्या ने मर्डोक को इस कदर उत्साहित कर दिया कि वे एक्सक्लूसिव ख़बरें देने के लिए लोगों के फ़ोन भी टेप करवाने लगे. रूपर्ट मर्डोक ने इस काम को करने के लिए पत्रकार ही नहीं जासूसों की भी सहायता ली.
मर्डोक ने निजी जासूसों के माध्यम से ४,००० से अधिक लोगों के फोन टेप करवाए और उन्हें दर्ज कर ख़बरों के रूप में बाजार में बेच दिया. “न्यूज़ ऑफ़ थे वर्ल्ड” लोगों के दुखों को एक्सक्लूसिव खबर के रूप में मीडिया बाजार में बेचता रहा. इन ख़बरों कि प्रमाणिकता सिद्ध करने के लिए अख़बार ने फोन टेपिंग और वायस मेल हैक करना शुरू कर दिया. इस समाचारपत्र ने सेलिब्रिटी से लेकर आम लोगों तक के फोन टेप करवाए. जिन लोगों के फोन टेप किये गए उनमें लन्दन आतंकी हमले के पीड़ितों से लेकर १३ वर्षीय बालिका मिली दादलर भी शामिल थी. इसमें गौरतलब यह है कि ख़बरों के इस अनैतिक बाजार में सरकार कि भूमिका भी सन्देहास्पद रही है.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार एंडी कालसन इस समाचार पत्र के संपादक रहे हैं. जिन्हें इस मामले के तूल पकड़ने के बाद पत्र से इस्तीफा देना पड़ा. फोन टेपिंग के इस मामले में प्रधानमंत्री की भूमिका भी सवालों से परे नहीं है. प्रधानमंत्री को इसी दबाव के कारण शुक्रवार को विस्तृत न्यायिक जांच कि घोषणा करनी पड़ी. डेविड कैमरन ने बयान जारी कर कहा कि ” जो कुछ भी हुआ उसकी जांच होगी, गवाहों को एक जज के साथ शपथ लेकर बयान देना होगा. कोई कसर बाकि नहीं रखी जाएगी”. इसके साथ ही ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने यह भी स्वीकार किया है कि मीडिया के लोगों कि ओर से होने वाली गलत हरकतों को नेताओं ने नजरंदाज किया है.
डेविड कैमरन की इस स्वीकारोक्ति में सच्चाई है. दरअसल रूपर्ट मर्डोक मीडिया के वैश्विक स्तर के व्यवसायी हैं, जिनसे नेता उलझना नहीं चाहते हैं. मर्डोक भी अपनी ख़बरों की दुकान चलाने के लिए नेताओं से सांठ-गाँठ कर लेते हैं. इस प्रकार के नापाक गठबंधन में सत्तापक्ष की बात को मीडिया अपने स्वर में कहता है. इसके बदले में नेता मीडिया हाउस के वैध-अवैध धंधों को संरक्षण देते हैं. राजनीति और मीडिया के गठजोड़ की यह संस्कृति ब्रिटेन और पश्चिमी देशों लम्बे समय से चली आ रही है. इसे ध्यान में रखते हुए भारतीय मीडिया के शुभचिंतकों को इस संस्कृति से बचाव का रास्ता तैयार कर लेना चाहिए.
भारत में भी हाल ही में राजनीति और मीडिया का गठजोड़ देखने को मिलता रहा है. चाहे वह बाबा रामदेव और समर्थकों पर हमला हो या “युवराज” के दौरों की रिपोर्टिंग. इन सभी में कहीं न कहीं मीडिया पर सरकारी प्रभाव देखने को मिलता है. “न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड” के मामले से भारतीय मीडिया कारोबारियों को भी यह समझ लेना चाहिए कि दर्शक वह नहीं देखना चाहते जो मीडिया उन्हें दिखा रहा है. बल्कि दर्शक  सच्चाई से रूबरू होना चाहते हैं. जिसका विकल्प सरकार प्रायोजित और मनोरंजन प्रधान समाचार माध्यम नहीं हो सकते हैं. यह एक सच्चाई है, जिससे भारत के मीडिया को सबक लेकर आगे बढ़ना चाहिए.

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