Monday, July 18, 2011

कफ़न को झंडा बनाते दिग्विजय सिंह

भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई आतंकी हमलों के मामले में कराची और काबुल की कतार में आ खड़ी हुई है. काबुल और कराची के बाद मुंबई का स्थान आता हैजहाँ आतंकी हमलों में पिछले वर्षों के दौरान सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं. इसका कारण भारत की सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी और केंद्र सरकार का ढुलमुल रवैया रहा है. देश की सुरक्षा एजेंसियां वर्ष भर हिन्दू आतंकवाद के शगूफे को येन-केन प्रकारेण सिद्ध करने में लगी रहीं. भारत की सत्ता  ने सुरक्षा एजेंसियों को हिन्दू आतंकवाद के शगूफे को साबित करने की जिम्मेदारी सौंपी थी. जिसके कारण जिहादी आतंकियों को एक बार फिर से मुंबई को दहलाने का अवसर हाथ लग लगा. हमने इस हमले से भी कोई सबक नहीं लियामुंबईवासियों की रोजी-रोटी कमाने की मजबूरी को हमने उनका जीवट बताना शुरू कर दिया है. समस्त विश्व यह जानता और मानता हैकि जिहादी आतंकवाद मानव सभ्यता के लिए खतरा है. जिहादी आतंक का खतरा विश्व के सबसे अशांत और आतंकी मुल्क के नजदीक भारत पर सबसे अधिक है. जिहादी आतंकी का हमला भी हमने ही सबसे अधिक झेला हैजिससे हमें स्वाभाविक ही अपनी आतंरिक सुरक्षा को मजबूत करने का सबक सीख लेना चाहिए था. दुर्भाग्य से भारत सरकार यह सबक नहीं सीख पाईइसका कारण वोट बैंक की कुटिल राजनीति है. 
दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक मुल्क की सत्ता ने वोट बैंक की खातिर इन खतरों को नजर अंदाज कर दिया. इसके उलट दिग्विजय सिंह जैसे शिखंडियों के माध्यम से भारत की सत्ता ने देश के बहुसंख्यक सहिष्णु समाज के लोगों को ही आतंकी घोषित करना शुरू कर दिया. कांग्रेस के "युवराज" ने अमेरिकी राजदूत तक को यह बताया की भारत को हिन्दू आतंकवाद से खतरा है. कैसी विडम्बना है कि समस्त विश्व को जिहादी आतंकवाद से खतरा हैऔर भारत को हिन्दू आतंकवाद से खतरा है वास्तव में देश को ऐसी नस्ल के नेताओं से खतरा हैजो आतंकी हमलों में मारे गए लोगों के कफ़न को भी अपनी पार्टी का झंडा बनाकर ऊंचा उठाने का जघन्य प्रयास करते हैं. इन नेताओं कि श्रेणी में देश के कथित "युवराज" भी शामिल हैं. मुंबई में हुए बम धमाकों में मारे गए लोगों के प्रति इन नेताओं ने संवेदना तो नहीं प्रकट की बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इन हमलों में शामिल होने का बेसुरा राग और बजा दिया. गौरतलब है कि मुंबई हमलों के अपराधियों का सुराग पाने के लिए जांच एजेंसियां अभी सीसीटीवी कैमरे ही खंगाल रही हैंलेकिन कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका तय कर दी है. यह लाशों पर राजनीति करने के अलावा और क्या है ? आतंकी हमले पर इस प्रकार की कुटिल और राष्ट्रद्रोही राजनीति यह दर्शाती है कि भारत की सत्ता अपने नागरिकों के प्रति कितना संवेदनशील है.
 जिस देश की सत्ता अपने नागरिकों के प्रति संवेदनशील नहीं हैउसे सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं है. जो सरकार संसद पर हमला करने वाले और १८३ लोगों को मौत देने वाले को पोषण दे रही है. वह सत्ता देश की सुरक्षा किस प्रकार से सुनिश्चित कर सकती है. यदि देश की सुरक्षा सुनिश्चित करनी हैतो उसका केवल एक ही उपाय है जिहादी आतंकवाद को सबक सिखाया जाये. इसके लिए कफ़न को भी झंडा बनाने वाली संवेदनाहीन राजनीति की नहीं राष्ट्रनीति और समाजनीति की आवश्यकता है. जिस राष्ट्र की राजनीति राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा करती हैवह राष्ट्र कैसे सुरक्षित रह सकता है ? इसलिए यह आवश्यक है की राजनेता अपने क्षुद्र स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित की राजनीति करें. इस राजनीति का पहला कर्तव्य यही होगा की देश के बहुसंख्यक समाज की भावनाओं का सम्मान किया जाये और और वोट बैंक की खातिर उसके हितों से खिलवाड़ न किया जाये. 

                                                          
 surya

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