Thursday, August 18, 2011

भ्रष्टाचार के कारण और निवारण



भारत में यह समय भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ने का है. समस्त देश में भ्रष्टाचार एक व्यापक मुद्दा है जिसके लिए जनता के जनजागरण की आवश्यकता है. यह जनजागरण सरकार बदलने के लिए नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए होना चाहिए. हमने इससे पहले भ्रष्टाचार को लेकर सरकारें बदली भी है और सरकार बनाई भी है. हमने भ्रष्टाचार एवं आपातकाल के मुद्दे को लेकर सन १९७७ में सरकार बनाने में सफलता पाई थी, लेकिन हम भ्रष्टाचार को रोकने में सफल नहीं हो पाए. इसका कारण यह है कि भ्रष्टाचार सरकारों की खामियों से ही नहीं बल्कि व्यवस्था की खामियों से भी है.

हमारे यहाँ लोकतंत्र की परिभाषा ही विकृत हो गयी है. लोकतंत्र का अर्थ होता है लोगों का तंत्र, लेकिन भारतीय लोकतंत्र में तंत्र लोक पर हावी हो गया है. तंत्र लोगों पर नियंत्रण करने लगा है, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि तंत्र लोगों के द्वारा निर्देशित हो और उनकी आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करे. लोकतंत्र में तंत्र की भूमिका केवल प्रबंधन के स्तर तक और प्रतिनिधित्व के स्तर तक सीमित रहनी चाहिए. व्यवस्था परिवर्तन को लेकर आन्दोलन करने और लड़ाई छेड़ने से पहले हमें भ्रष्टाचार को समझने की आवश्यकता है. हमें भ्रष्टाचार की परिभाषा तय करनी होगी तथा उसकी मात्रा का भी पता लगाना होगा. इसके बाद भ्रष्टाचार से निपटने का समाधान और यह समाधान कौन करेगा यह भी हमें तय करना होगा. इसके बाद हमको भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ने की ओर बढ़ना होगा.



भ्रष्टाचार की परिभाषा- जो कार्य मालिक से छिपाकर किया जाये (इसमें घूस लेना भी शामिल) वह भ्रष्टाचार है. अब यदि मालिक की बात करें तो मालिक तो तथाकथित सरकार है और उससे छिपाकर किया जाये वह भ्रष्टाचार है. यह तो सरकार और भ्रष्टाचारी के बीच का मामला हुआ, इसे सामाजिक भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है. यह केवल व्यवस्था के अंतर्गत भ्रष्टाचार है. अब इसमें भी हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम नियुक्त हुए व्यक्ति से नहीं बल्कि उसको नियुक्त करने वाली संस्था के विरुद्ध लड़ाई लड़ें अर्थात नियुक्तिकर्ता से लड़ाई लड़ें. हमारे समाज में प्रमुख समस्या यह है कि भ्रष्टाचार करने वालों ने भ्रष्टाचार की परिभाषा ही बदल दी है. हमें यह समझना होगा कि भ्रष्टाचार अपराध नहीं गैरकानूनी कृत्य है. दरअसल भारत के तंत्र ने यह अनुभव किया कि यदि नागरिक स्वयं को निर्दोष समझेगा तो तंत्र को चुनौती देगा. इसलिए इतने क़ानून बना दिए जाएँ कि उनका पालन न कर पाने के कारण वह स्वयं को अपराधी मानने लगे. यह स्थिति अधिक कानून बनाने से उत्पन्न हुई. इसलिए भ्रष्टाचार और क़ानून व्यवस्था पर नियंत्रण करने के लिए हमें अपराधों का वर्गीकरण करना होगा.

अपराधों का वर्गीकरण आवश्यक- भारत में नागरिकों को तीन प्रकार के अधिकार प्राप्त हैं- मूलभूत अधिकार, संवैधानिक अधिकार एवं सामाजिक अधिकार. यदि कोई व्यवस्था या व्यक्ति किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन करता है तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा और किसी के संवैधानिक अधिकारों का यदि हनन किया जाता है तो यह गैरकानूनी की श्रेणी में आएगा. इसी प्रकार से यदि किसी व्यक्ति के सामाजिक अधिकारों का हनन होता है तो यह अनैतिक कि श्रेणी में आएगा. इन तीनों का वर्गीकरण करने पर देश भर में अपराधियों की संख्या केवल २% ही रह जाती है. ऐसे में हमारी व्यवस्था के लिए यह आवश्यक है कि वह केवल २% अपराधों पर ही नियंत्रण का कार्य करे, बाकी की चिंता छोड़ दे. अब प्रश्न यह उठता है कि हमारे मूलभूत अधिकारों का हनन करने वाला कौन है? हमारे अधिकारों का हनन करने वाले वह लोग हैं, जिनको हमने अपने अधिकार अमानत में दिए हैं और उनको अपने अधिकारों की रक्षा का दायित्व दिया है. हमारे द्वारा दी गयी अमानत में खयानत करने वाले ही मुख्य रूप से अपराधी हैं और वह हैं हमारे राजनेता. अब हमें इन अपराधों पर नियंत्रण करने के उपायों के बारे में विचार करना होगा.

भ्रष्टाचार एवं अपराध रोकने के उपाय- भारत में अपराध रोकने की शक्ति केवल २% है, यदि अपराध २% से अधिक हो जायेगा तो सरकार उसको नियंत्रित नहीं कर पायेगी. इसलिए सरकार को केवल २% अपराधों के नियंत्रण पर ध्यान देने की आवश्यकता है. यदि इससे अधिक अपराधों पर नियंत्रण करने का प्रयास सरकार करेगी तो व्यवस्था पंगु हो जाएगी. अपनी क्षमताओं से अधिक कार्य करने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी ही नहीं चाहिए. इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार २% अपराधों पर पूरी शक्ति से नियंत्रण करने का प्रयास करे. अब सवाल यह भी उठता है कि क्या गलत लोगों को पकड़वाकर भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है. ऐसा संभव ही नहीं है, इस व्यवस्था के अंतर्गत तो बिल्कुल भी संभव नहीं है. इसका उपाय यह हो सकता है कि हम भ्रष्टाचार के अवसर ही पैदा न होने दें, लेकिन सरकार ऐसा करने के बजाय अधिकाधिक कानूनों के माध्यम से जनता को ही दोषी ठहराने के प्रयास में लगी हुई है. इसमें धर्मगुरु भी पीछे नहीं हैं. राजनेता और धर्मगुरु जनता को ही दोषी ठहराने में लगे हैं, लेकिन यह लोग तंत्र को दोषी नहीं बताते हैं. इसलिए आवश्यकता है कि तंत्र में व्याप्त विसंगतियों को दूर करते हुए इन समस्याओं से निपटने का प्रयास किया जाये.

कानून एवं नीतियों में विसंगतियां- भारत में कानूनों में भी असमानता है. जैसे बिना लाइसेंस के हथियार रखने का केस तो लोअर कोर्ट में चलेगा और गांजा की तस्करी का केस सेशन कोर्ट में चलेगा. इसी प्रकार से हमारी आर्थिक नीतियों में भी भारी असमानता है. हमारे यहाँ साईकिल पर तो ४०० रुपये का टैक्स है और गैस पर सब्सिडी है. विचारणीय प्रश्न यह है कि ३३% गरीब ५% गैस की खपत करता है और ३३% अमीर ७०% ऊर्जा की खपत करता है. इसी प्रकार से छत्तीसगढ़ सरकार ने कानून बनाया है कि २५ गन्ना किसानों को २५ किलोमीटर के दायरे में ही अपनी फसल को बेचना होगा, अर्थात मेहनत किसान की और लाभ मिलों का. इस प्रकार के कानून जनहितकारी नहीं हैं.

काले धन की समस्या और उसका निवारण- काला धन भारत में वापस आये यह अच्छा है लेकिन इससे पहले हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि क्या काला धन बनना बंद हुआ? क्या काला धन बाहर जाना बंद हुआ है? इसलिए जरूरी यह है कि काला धन बनना रुके और देश से बाहर जाना रुके. काले धन की लड़ाई में हमें एक और मुद्दे को जोड़ देना चाहिए, वह मुद्दा है जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार. लोक और तंत्र के अधिकार घोषित होने चाहिए, वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत जनता अधिकार शून्य है.

सत्ता के विकेंद्रीकरण की आवश्यकता- यदि किसी व्यक्ति या संस्था को असीमित अधिकार दिए जाते हैं तो भ्रष्टाचार की आशंका बढ़ जाती है. यदि मुख्यमंत्री, सांसद या विधायक का पद महंगा होगा तो उस पर सुशोभित व्यक्ति अपने आप ही भ्रष्ट हो जायेगा. इसलिए यह आवश्यक है कि उनके अधिकारों का विकेंद्रीकरण किया जाये. हमें ग्राम पंचायतों को भी अधिक अधिकार देने होंगे, जिससे सत्ता का विकेंद्रीकरण होगा. यदि इस व्यवस्था में भी भ्रष्टाचार आंशिक रूप से रह जाता है तो भी वह वर्तमान व्यवस्था से कम ही होगा. विकेंद्रीकरण किये जाने से जनभागीदारी भी बढ़ेगी और व्यवस्था में शामिल लोगों की स्पष्ट रूप से जवाबदेही भी तय हो सकेगी.

अंत में मैं यही कहूँगा कि भ्रष्टाचार की वर्तमान लड़ाई केवल एक शुरुआत या प्रतीक भर है. जिसके आगामी चरणों में हमें व्यवस्था परिवर्तन, सत्ता का विकेंद्रीकरण और जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार जैसे मुद्दों को सम्मिलित करना होगा. तभी भ्रष्टाचार मुक्त, सुदृढ़ लोकतान्त्रिक व्यवस्था के अंतर्गत भारत की आगे की राह तय हो पायेगी.

(सुप्रसिद्ध चिन्तक बजरंग मुनि से बातचीत पर आधारित)

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