Wednesday, September 21, 2011

राष्ट्रीय राजनीति का बदलता परिदृश्य

देश की राजनीति इस समय बदलाव की ओर है. राष्ट्रीय राजनीति में पक्ष और विपक्ष के कई प्रमुख चेहरों के सामने साख का संकट है. जिसके कारण उन चेहरों को निखारने का प्रयास किया जा रहा है, जिनके दम पर वोट बैंक का समीकरण साधा जा सकता है. सन २००४ से सत्ता पर काबिज कांग्रेस पार्टी के प्रमुख चेहरे और ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं. कांग्रेस पार्टी को अगले आम चुनावों में मनमोहन सिंह के नाम पर वोट मिलने की उम्मीद नहीं है. इसी के चलते कांग्रेस पार्टी ने कथित ’युवराज’ राहुल गांधी को आगे कर दिया है. दरअसल कांग्रेस पार्टी इस ग़लतफ़हमी में है कि राहुल गांधी के युवा नेतृत्व के नाम पर देश के आम आदमी का साथ कांग्रेस के हाथ को मिलेगा. जिस देश का युवा कांग्रेसी राज से त्रस्त होकर ७० वर्षीय अन्ना के आन्दोलन में सहभागी है, वह राहुल का वोट बैंक कैसे बन सकता है? इससे पहले भी कांग्रेस पार्टी के करिश्माई चेहरे राहुल गांधी का जादू बिहार जैसे अहम राज्य में नहीं चल पाया था. उत्तर प्रदेश में भी उनकी असली परीक्षा अभी बाकी है जहां की फिजा अन्ना अनशन के बाद से बदल गयी है. महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद जैसे मुद्दों ने राहुल की राजनीति को पलीता लगाया है.

अब एक सवाल यह भी उठता है कि यदि कांग्रेस अपनी साख गवां चुकी है और राहुल प्रभावी चेहरा नहीं हैं तो उनका विकल्प क्या है? क्या देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी के पास राहुल का कोई विकल्प है? जिसे पार्टी आम चुनावों में अपना चेहरा बना सकती है. वर्तमान समय में अपने विकास मॉडल के लिए अमेरिकी प्रशंसा पाने वाले नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताने की होड़ चल पड़ी है. जिससे यह समझ में आता है कि देश में नरेन्द्र मोदी का प्रभाव अवश्य है. अभी तक नरेन्द्र मोदी ने अपनी भूमिका को गुजरात तक ही सीमित रखा है. दरअसल देश की प्रमुख विपक्षी पार्टियों कांग्रेस और भाजपा की यह समस्या लगभग एक सी है कि केंद्र में स्थापित उनके प्रमुख नेताओं की विश्वसनीयता दांव पर है. ऐसे में दोनों ही पार्टियों के लिए यह आवश्यक है कि आम चुनावों में नए चेहरे को उतार वोट बैंक का समीकरण साधा जाये. नए नेता का चुनाव करने की स्थिति में भाजपा में कांग्रेस की अपेक्षा अधिक समस्याएं हैं. जहां कांग्रेस पार्टी नेहरु-गांधी परिवार को नेतृत्व सौंपने को लेकर कोई विवाद नहीं रहता है, वहीँ भाजपा में नेतृत्व की लड़ाई जगजाहिर है. ऐसे में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाये जाने के क्रम में पहला विरोध पार्टी से ही हो सकता है. यदि आडवाणी समर्थक लॉबी नरेन्द्र मोदी की दावेदारी का समर्थन करे तो नरेन्द्र मोदी के रास्ते की पहली बाधा दूर हो सकती है.

हालांकि अन्ना के अनशन के बाद अभी एक सर्वे कंपनी निल्सन ने २८ राज्यों में अपना एक सर्वे कराया और उसमें सभी जाति, धर्म के लोगों को शामिल किया .इस सर्वे से यह बात स्पष्ट रूप से ज्ञात हुआ कि आम आदमी केंद्र सरकार के शासन व्यवस्था से आजिज आ चुकी है . इस सर्वे की रिपोर्ट में भाजपा को ३१ प्रतिशत व कांग्रेस को २० प्रतिशत अंक हासिल हुए हैं अर्थात अगर तत्काल में चुनाव कराये जायें तो यह बात स्पष्ट है कि भाजपा की जीत सुनिश्चित है . लेकिन राष्ट्रीय स्तर की इस पार्टी में वर्तमान में नेतृत्व की भूमिका का अभाव प्रतीत होता है क्योकि भाजपा में नेतृत्वकर्ता के रूप में अब आम आदमी एक ऐसी छवि को देखना चाहता है जो वास्तव में आम आदमी के हित के साथ-साथ देश का भी विकास कर सके और इसका जीता जागता प्रमाण गुजरात में हो रहे विकास के रूप में सबके सामने प्रस्तुत है .

भारतीय जनता पार्टी यदि मोदी को मैदान में उतारती है तो उसे गठबंधन के स्तर पर भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी. फिर भी नरेन्द्र मोदी वह फैक्टर हैं जो इन सभी मुद्दों पर भाजपा को विजय दिला सकते हैं. ऐसे समय में जब पार्टी को व्यापक जनाधार वाले और लोकप्रिय नेता की तलाश हो तो नरेन्द्र मोदी ही सबसे उपयुक्त दिखाई पड़ते हैं. अब बात है नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी के बीच मुकाबले की तो उसका फैसला जनता के हाथों में है कि वह किसे नेता के रूप में स्वीकार करती है. अंततः भाजपा के लिए केंद्र की सत्ता के लिए ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में मुख्य लड़ाई में बने रहने के लिए भी नए चेहरे की तलाश है जो नरेन्द्र मोदी के रूप में पूरी हो सकती है.

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