Saturday, February 25, 2012

पत्रकारिता पवित्र सेवा कार्य है- दशरथ प्रसाद द्विवेदी

हिंदी पत्रकारिता ने अपने प्रारंभिक काल से ही विभिन्न परिवर्तनों और आंदोलनों में उल्लेखनीय भूमिका का निर्वाह किया है। राष्ट्रवाद को यदि पत्रकारिता का प्राणतत्व भी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। समाज के हर व्यक्ति के ह्दय को स्वदेश प्रेम के भाव से परिपूर्ण करने का कार्य हिंदी पत्रकारिता ने अपने उद्भव काल से ही किया है। इसी प्रखर राष्ट्र भाव को जन-जन में जागृत करने का कार्य दशरथ प्रसाद द्विवेदी जी ने साप्ताहिक पत्र स्वदेश के माध्यम से किया था। द्विवेदी जी ने अपने पत्र ‘स्वदेश‘ के माध्यम से लोगों का जागरण किया। उनके पत्र ‘स्वदेश‘ के प्रथम पृष्ठ पर ही स्वराष्ट्र धर्म की भावना को जागृत करने वाली निम्नलिखित पंक्तियां लिखी रहती थीं-

‘‘जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह ह्दय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।‘‘

‘स्वदेश‘ में संपादकीय टिप्पणी के ऊपर कलात्मक ढंग से लिखा रहता था-

‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि‘‘

दशरथ जी थानेदारी की नौकरी छोड़कर पत्रकारिता के क्षेत्र में आए थे। गणेश शंकर विद्यार्थी के ‘प्रताप‘ में उनके सहायक भी रहे थे, दशरथ जी। वहीं उन्होंने ‘स्वदेशी' भाव का पाठ पढ़ा था, जिसके लिए वे जीवन-पर्यंत समर्पण भाव से कार्य करते रहे।
दशरथ प्रसाद द्विवेदी की पत्रकारिता का मूल स्वर राष्ट्रवाद ही था, शायद गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे प्रखर पत्रकार के सहयोगी होने का भी यह प्रभाव रहा हो।

पं दशरथ प्रसाद द्विवेदी ने पत्रकारिता के कार्य को एक सेवाकार्य मानते हुए अपना कार्य किया और आने वाली पत्रकार पीढ़ी को भी यही संदेश दिया। पत्रकारिता के क्षेत्र को समाज सेवा का माध्यम बताते हुए उन्होंने लिखा था-

‘‘अखबारनवीसी अथवा पत्रकार जीवन भला है या बुरा ? इस प्रश्न का का कोई दो टूक उत्तर नहीं दिया जा सकता। किंतु किसी को अपना जीवन दिव्य और उपयोगी बनाना है तो यह एक पवित्र सेवा है, इसमें जरा भी संदेह नहीं।‘‘ (स्वतंत्रता संग्राम की पत्रकारिता और दशरथ प्रसाद द्विवेदी- डा. अर्जुन तिवारी)

ऐसे समय में जब पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाले लोग ग्लैमर जानकर पत्रकारिता के क्षेत्र में आते हैं, तब दशरथ जी की निम्न पंक्तियां समीचीन जान पड़ती हैं-

‘‘हिंदी पत्रकारिता की नींव ही कुछ ऐसी पड़ी है कि अपना उल्लू सीधा करने वालों की इसमें गुंजाइश ही बहुत कम है। शुद्ध सेवा-भाव को लेकर त्याग एवं तप का जीवन बिताने वाले लोग ही अब तक हिंदी अखबारनवीसी में पनपे हैं।‘‘(स्वतंत्रता संग्राम की पत्रकारिता और दशरथ प्रसाद द्विवेदी- डा. अर्जुन तिवारी)

दशरथ प्रसाद द्विवेदी ने पत्रकारिता को एक मिशन मानते हुए कार्य किया। पत्र चलाने के लिए विभिन्न आर्थिक आवश्यकताओं की अधिक परवाह न करते हुए उन्होंने विज्ञापनों के बिना ही ‘स्वदेश‘ को लंबे समय तक सफलतापूर्वक चलाया। यद्यपि वे हिंदी समाचार पत्रों के प्रति सदैव चिंतित भी रहे। हिंदी पत्रों के दर्द को बयां करते हुए उन्होंने लिखा था-

‘‘हिंदी समाचार पत्रों का कोई पुरसाहाल (हाल पूछने वाला) नहीं (हाल पूछने वाला) हम जानते हैं अंग्रेजी पत्र अखबारी संसार में बढ़े-चढ़े हैं, उनकी बहुत कुछ प्रतिष्ठा है, अपने क्षेत्र में उनकी अच्छी पैठ है, वे काम भी अच्छा करते हैं, किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि देशी भाषाओं में निकलने वाले अपने अन्य सहयोगियों को इस प्रकार उपेक्षा की दृष्टि से देखें।‘‘ (स्वदेश, 23/06/1919)

वर्तमान समय में पत्रकारिता पर भी निगरानी की बात जोरों पर है। ऐसे समय में दशरथ जी की निम्न पंक्तियां दृष्ट्व्य हैं-
‘‘हमारी समझ से तो हिंदी प्रेस एसोसिएशन को अभी दो काम हाथ में लेना चाहिए। एक तो यह कि हिंदी के प्रत्येक पत्र पर अपना नियंत्रण रखे और इस बात का प्रयत्न हो कि कोई भी पत्र-पत्रिका बहकी हुई बातें न लिखे।‘‘ (स्वदेश, 30/06/1919)

पत्रकारिता के क्षेत्र में बढ़ते व्यावसायिक दबावों के कारण अक्सर समाचारपत्रों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। यह पत्रकारिता के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता है। पं दशरथ प्रसाद द्विवेदी ने समाचार पत्रों की आर्थिक समस्याओं के निराकरण के संबंध में लिखा था-

‘‘प्रेस एसोसिएशन को खास तौर पर यह कार्य करना चाहिए कि वह हिंदी पत्रों और प्रेसों का अधिकांश भार अपने ऊपर ले। समय कुसमय वह उनकी मदद करे। हिंदी जनाता को अखबारों के पढ़ने की ओर झुकाकर वह अपना कोष भरे।‘‘ (स्वदेश, 30/06/1919)
दशरथ जी ने पत्रकारिता में अपना योगदान अपने लेखन के माध्यम से ही नहीं बल्कि पत्रकारिता के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़कर भी दिया। ब्रिटिश सरकार द्वारा सन 1910 लागू किए गए प्रेस एक्ट का मुखर विरोध करने वालों में दशरथ जी का प्रमुखता से नाम लिया जा सकता है। प्रेस एक्ट का विरोध करने के लिए उन्होंने तत्कालीन समाचार पत्रों से एकजुट होने का आह्वान किया और प्रेस एसोसिएशन के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

दशरथ जी ने विपरीत परिस्थितियों में हिंदी प्रेस एसोसिएशन के गठन के माध्यम से समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं को बल प्रदान किया। इस संदर्भ में उन्होंने लिखा था-

‘‘हिंदी प्रेस एसोसिएशन के संगठन में इस बात का ध्यान देना चाहिए कि आगे चलकर, वह भी अपने अधीनस्थ प्रेसों व पत्रों को जोरदार बना सके।‘‘

दशरथ जी ने ‘स्वदेश‘ के माध्यम से जन-जन तक तिलक और गांधी के विचारों को प्रसारित किया। स्वदेश की लोकप्रियता का ही परिणाम था कि प्रेमचन्द, सोहनलाल द्विवेदी, अयोध्या सिंह हरिऔध और मैथीलीशरण गुप्त जैसे विभिन्न महान साहित्यकारों ने स्वदेश को अपना सहयोग दिया।

ऐसे समय में जब साहित्यिक पत्रों एवं पत्रिकाओं की संख्या में कमी आई है तथा साहित्य और पत्रकारिता के बीच दूरी बढ़ी है। तब दशरथ प्रसाद द्विवेदी जैसे योद्धा पत्रकार के प्रेरक विचार वर्तमान पत्रकार पीढ़ी के लिए अनुकरणीय जान पड़ते हैं।

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