Sunday, September 23, 2012

न्यू-मीडिया के सामने अब भी हैं कई सवाल


न्यू-मीडिया के योगदान और उसकी संभावनाओं के बारे में पिछले कुछ दिनों में बहुत चर्चाएं हुई हैं। मीडिया के नए अवतार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सामाजिक जागरूकता में सहायक एवं मुख्यधारा की मीडिया का बेहतर विकल्प बताया जा रहा है। यह सही भी है कि न्यू-मीडिया ने नागरिक पत्रकारिता की अवधारणा को मजबूत किया एवं मीडिया को व्यक्तिगत स्तर तक पहुंचाया है। वह नागरिक जो मुख्यधारा की मीडिया के सुनियोजित समाचार-विचार सुनकर चुप लगाता था वह अब उसकी प्रतिक्रिया में अपनी बात कहने में सक्षम भी हुआ है। न्यू-मीडिया की इस देन ने पत्रकारिता जगत में पारदर्शिता एवं व्यक्तिगत भागीदारी को बढ़ाया है।

न्यू-मीडिया ने मीडिया के लोकतांत्रिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। किंतु, स्वतंत्रता का उपयोग किसी पर हमला करने अथवा भ्रामक टिप्पणी या समाचार प्रसारित करने के लिए उपयोग हो तो खतरनाक हो जाती है। वैश्विक पहुंच, व्यक्तिगत भागीदारी एवं तीव्रता जैसे गुणों वाले न्यू-मीडिया का दुष्प्रयोग उसके गुणों जितना ही खतरनाक भी है। इसलिए न्यू-मीडिया के गुणों का लाभ उठाते हुए हमें उसके अनजान खतरों से भी सवाधान रहना चाहिए। यह सच है कि बीते कुछ वर्षों से सरकार की साख और कार्यों पर सवाल खड़े हुए हैं और इन सवालों को खड़ा करने में न्यू-मीडिया भी सहायक रहा है। किंतु, सरकारिया घोटालों को उजागर करने वाले न्यू-मीडिया में प्रसारित गलत समाचारों ने उसकी साख को भी घेरे में लाने का काम किया है।

पिछले दिनों ग्लोबल एसोसियेटिड न्यूज नामक एक फर्जी वेबसाइट ने अमिताभ बच्चन के सड़क दुर्घटना में मारे जाने की खबर प्रसारित की थी। राजेश खन्ना की मृत्यु से कई दिन पूर्व ही उनकी मृत्यु का समाचार प्रसारित किया गया था। पिछले वर्ष शशि कपूर की मृत्यु का भी फर्जी समाचार प्रसारित हुआ। जिसे लोगों ने ट्वीट और री-ट्वीट करना प्रारंभ कर दिया। प्रशंसकों ने अपने स्टार को श्रद्धांजलि देना भी प्रारंभ कर दिया। इसी प्रकार से दक्षिण अफ्रीका में पिछले वर्ष 16 जनवरी को नेल्सन मंडेला की मृत्यु की सनसनीखेज एवं भ्रामक खबर सोशल मीडिया पर तैर गई थी। इन खबरों से परेशान होकर नेल्सन मंडेला फांउडेशन ने विज्ञप्ति जारी की कि मंडेला स्वस्थ और जीवित हैं। गौरतलब है कि ऐसी ही खबर ओबामा के बारे में भी प्रसारित हुई थी।

न्यू-मीडिया पर प्रसारित भ्रामक समाचार कई बार विकट स्थिति उत्पन्न कर देते हैं। जैसे असम हिंसा के संदर्भ में हुआ। वह मुददा जो प्रदेश में ही चिंता का विषय था, वह पूरे देश के लिए त्रासदी जैसा हो गया। इसका कारण कुछ उपद्रवी अथवा सिरफिरे लोगों के द्वारा न्यू-मीडिया का दुष्प्रयोग था। न्यू-मीडिया पर इस प्रकार के दुष्प्रचार अथवा व्यक्ति विशेष की अवमानना से संबंधित मामलों में कार्रवाई करना भी कठिन है। इसका कारण फेसबुक, ट्विटर अथवा अन्य सोशल साइट्स पर बने फर्जी अकांउटस हैं। न्यू-मीडिया उस वन की तरह हो गया है जहां वन्य प्राणी स्वच्छंद विचरण करते हैं। किंतु, वह माध्यम जिसकी वैश्विक पहुंच ही उसकी बड़ी कमजोरी भी हो उसमें इस तरह के विचरण की आजादी नहीं दी जा सकती है।

पिछले दिनों ट्विटर ने प्रधानमंत्री के छह फर्जी ट्विटर खातों को बंद किया। यह एक गंभीर मामला है। प्रधानमंत्री के फर्जी खातों पर उनके फालोवर भी बहुत थे,  वे उस अकांउट पर की जाने वाली टिप्पणी को प्रधानमंत्री की टिप्पणी समझ खुश हुए होंगे। यह मामला पहचान चुराने जैसा है। किसी भी व्यक्ति की पहचान को चुराकर उसका गलत इस्तेमाल करना गैरकानूनी है। साइबर विशेषज्ञ पवन दुग्गल के मुताबिक किसी के नाम फर्जी अकांउट बनाना आईटी कानून की धारा 66 सी के तहत कानूनी अपराध है।

असम दंगों में अफवाहें फैलाने के मामले में जब विवादित अकांउट्स की जांच की गई तो अधिकतर फर्जी निकले। इस तरह के मामलों में अब तक सरकारी नीति प्रतिबंध अथवा कुछ दिनों के लिए प्रतिबंध की रही है। जो इसका सही हल नहीं है। प्रतिबंध लगाने की बात कहते ही वह अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाम कसने जैसा लगता है। न्यू-मीडिया के सही उपयोग एवं संभावित खतरों से बचने के लिए यह अनिवार्य है कि कोई भी अकांउट बिना प्रामाणिक जानकारी के न खुले। पहचान निश्चित होने के बाद भी कोई विवादित टिप्पणी अथवा चित्र पोस्ट करे, ऐसा मुश्किल ही होगा। साथ ही ऐसी टिप्पणियां करने वालों की पहचान कर कार्रवाई करना बहुत आसान हो जाएगा। ट्विटर, फेसबुक अथवा अन्य सोशल साइटों से जब भी विवादित सामग्री हटाने को कहा गया तो अपने जवाब में उन्होंने इस प्रकार की कार्रवाई को मुश्किल बताया। इसका कारण यह भी है कि इनका सर्वर यहां न होकर अमेरिका में है। ऐसे में प्रत्येक पोस्ट पर निगरानी रखना संभव नहीं है।

जब पोस्ट पर पहले निगरानी रखना संभव न हो और रोकना भी संभव न हो। तब पोस्ट करने वाले की पहचान सुनिश्चित होना अनिवार्य है। भारतीय लोकतंत्र में साइबर दुनिया से इतर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है। लेकिन उसमें व्यक्ति की पहचान छिपी नहीं रहती है। किंतु, सोशल मीडिया में इसके उलट पहचान न होना ही सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में सोशल मीडिया पर पाबंदी के बजाय उसके लिए कानूनी प्रावधानों की आवश्यकता है। साथ ही व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित हो सके इसके लिए अकांउट बनाते समय उसकी पहचान सुनिश्चित करना भी अनिवार्य हो गया है।

सोशल नेटवर्किंग साइट सोशल नेटवर्क को प्रगाढ़ करें। लोकतांत्रिक बहस-मुबाहिसों का हिस्सा बनी रहें। लोकतंत्र को मजबूत करने में रचनात्मक भूमिका का निर्वाह करें। ऐसे कानून की आवश्यकता है ताकि सोशल नेटवर्किंग साइट पर गैर-सोशल पोस्ट करने वालों की पहचान कर उन पर कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके। 


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