Monday, May 27, 2013

भारतीय अस्मिता से परे गूगल का डूडल

 
आज लोगों में यह जुमला आम प्रचलित हो गया है कि कोई भी जानकारी चाहिए तो इंटरनेट पर सर्च कर लो। सब कुछ मिल जाएगा। लगभग सब कुछ मिलता भी है। गूगल की दुनिया ने लोगों को ज्ञान और संवाद का एक सुलभ मंच उपलब्ध कराया है। यही कारण है कि किसी भी जानकारी के लिए लोगों की निर्भरता इंटरनेट पर बढ़ती जा रही है। युवाओं की जमात के लिए तो किसी भी जिज्ञासा का सहज और अंतिम समाधान इंटरनेट ही है। ऐसे में इंटरनेट की दुनिया में जो भी परोसा जाता है लोग उसे जिज्ञासापूर्ण तरीके से लेते हैं। यही गूगल की सफलता का कारण भी है। किसी को भी उपयोग या उपभोग के लिए आकर्षित करने के लिए यह जरूरी है कि उस व्यक्ति में संबंधित वस्तु अथवा सेवा के प्रति जिज्ञासा पैदा की जाए। ऐसी ही जिज्ञासा गूगल भी जगाता है। वैश्वीकरण के टूल की बात की जाए तो गूगल वैश्वीकरण का सबसे बड़ा टूल है। 
वर्तमान वैश्विक ग्राम की अवधारणा को गूगल ने मजबूती प्रदान की है। एक कमरे में बैठा व्यक्ति गूगल के जरिए दुनिया से जुड़ सकता है, संवाद कायम कर सकता है। लेकिन गूगल की दुनिया उसे दुनिया की सैर तो कराती है, पर कहीं कहीं व्यक्ति को उसकी ही संस्कृति से परे भी ले जाने का काम करती है।

टेलीविजन और बाजार के माध्यम से पश्चिमी देशों ने भारत जैसे विकासशील देशों में उनकी सांस्कृतिक जड़ों को कमजोर कर उपभोक्तावाद की ओर ले जाने के प्रयास किए। अब यही काम गूगल की दुनिया के जरिए भी किया जा रहा है। कहा जाता है कि जिस देश के लोग अपने पिछले इतिहास को भूल जाते हैं, वे अपने देश के बारे में बेहतर भविष्य योजना भी नहीं बना पाते हैं। भारत की युवा पीढ़ी के जेहन से उसके इतिहास को विस्मृत करने के काम को गूगल भी अंजाम दे रहा है। जिसका उदाहरण है गूगल का डूडल। इंटरनेट की शब्दावली में डूडल उन चित्रों को कहा जाता है जो किसी विशेष अवसर या व्यक्ति की याद में गूगल के होमपेज पर प्रदर्शित किए जाते हैं। लेकिन बात करें इन डूडल्स की तो भारतीय सरोकारों से यह डूडल लगभग अछूते ही हैं। वर्ष 2012 में प्रदर्शित डूडल्स की बात की जाए तो वर्ष की शुरूआत नववर्ष के बधाई संदेश वाले डूडल से शुरू होती है। इसके बाद 7 जनवरी को अमरीकी कार्टूनिस्ट चाल्र्स एडम की जयंती मनाई जाती है। जिनके नाम से शायद ही भारत के अधिकतर इंटरनेट उपयोगकर्ता वाकिफ होंगे। इसके बाद 11 जनवरी को निकोलस स्टेनो नामक के डेनिश वैज्ञानिक को याद किया जाता है। इसी प्रकार से अनेकों डूडल प्रदर्शित किए जाते हैं जिनका भारत से कोई सरोकार नहीं है। हालांकि 26 जनवरी को भारतीय गणतंत्र दिवस और 15 अगस्त को भारतीय स्वतंत्रता दिवस जरूर गूगल पर मनाया जाता है। लेकिन इसके अलावा वर्ष भर भारतीय इंटरनेट उपयोगकर्ता गूगल के डूडल के जरिए दुनिया की सैर तो करते हैं, लेकिन भारत से अछूते ही रहते हैं। गौरतलब है कि जिन महात्मा गांधी के बारे में पूरी दुनिया जानना चाहती है, उनका स्मरण करने के लिए गूगल के डूडल के पास वक्त नहीं होता है। जबकि बापू के जन्मदिवस को संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के तौर पर घोषित किया है। 
पूरे विश्व में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की बात की जाए तो भारत इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या के लिहाज से तीसरे स्थान पर आता है। सन् 2011 के आंकड़ों के अनुसार चीन में लगभग 54 करोड़ लोग इंटरनेट की दुनिया में सक्रिय हैं, वहीं अमरीका में लगभग 24 करोड़ दो लाख लोग गूगल की दुनिया में मौजूद हैं। वहीं लगीाग 11 करोड़ दस लाख इंटरनेट यूजर्स के साथ इंटरनेट उपयोगकताओं की संख्या के लिहाज से भारत दुनिया का तीसरा देश है। अब सवाल यह है कि जिस गूगल की दुनिया में सक्रिय लोगों की संख्या के लिहाज से भारत तीसरे स्थान पर है, वहीं गूगल के डूडल ने भारत को एक तरह से अनलाइक ही किया हुआ है। वर्ष भर प्रकाशित डूडल स्वीडन, अमरीका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और इटली आदि की सैर तो कराते हैं, लेकिन भारत की अस्मिता से इंटरनेट यूजर्स का परिचय नहीं कराते। अमरीका के मार्टिन लूथर किंग की अश्वेत क्रांति को तो गूगल बताता है, लेकिन गांधी या अंबेडकर के जीवन परिचय और उनके सामाजिक योगदान से वह परे ही रहता है। आज भारत में जहां इंटरनेट को क्रांति का वाहक कहा जा रहा है, कुछ एक आंदोलनों से ऐसा साबित हुआ भी है। लेकिन यही इंटरनेट बीते समय में हमारी क्रांतिकारी विरासत की जानकारी ही युवा पीढ़ी को नहीं देता। आज डूडल पर भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद नदारद हैं तो इंटरनेट के साथ पली-बढ़ी पीढ़ी किस प्रकार इनके आदर्शों को आत्मसात कर पाएगी। 
सच यह है कि गूगल के होमपेज पर प्रदर्शित होने वाले गूगल को लेकर कोई निश्चित नीति नहीं है और गूगल से जुड़े कुछ एनीमेटर ही इस काम को अंजाम देते हैं। ऐसे में गूगल के डूडल में भारत को भी उपयोगकर्ताओं की संख्या के अनुपात में हिस्सेदारी अवश्य मिलनी चाहिए। या फिर भारत को भी गूगल के विकल्प पर विचार करते हुए स्वदेशी सर्च इंजन के आवष्किार पर विचार करना चाहिए। यह इस दिशा में सोचने का वक्त है कि क्या भारत को स्वदेशी सर्च इंजन की आवश्यकता है, जो हमारी भाषा में हमारी संस्कृति और मूल्यों को प्रोत्साहित करने का कार्य करे। और इंटरनेट की दुनिया में भारतीय क्रांति का वाहक बन सके। यहां कहने का अर्थ यह नहीं कि गूगल का विरोध है, लेकिन हमें गूगल के विकल्प के तौर स्वदेशी सर्च इंजन के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए। 

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