Wednesday, July 9, 2014

इराक की तपिश


अमेरिका के हाथों बर्बाद हो चुकी दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक मेसोपोटामिया यानी इराक एक बार फिर अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। सद्दाम हुसैन को सबक सिखाने के लिए 20 मार्च, 2003 को हुए अमेरिकी हमले में देश की तबाही तो पहले ही हो चुकी थी, अब विखंडन की राह पर भी आगे बढ़ता दिख रहा है। लेकिन सबसे बड़ा खतरा यह है कि एक बार फिर दुनिया में आतंकवाद का खतरा पैदा होने लगा है। वहीं, इराक में छिड़ा सांप्रदायिक संघर्ष इस्लामिक जगत में भी शिया और सुन्नी देशों के बीच तलवारें खिंचने की वजह साबित हो सकता है। इराक में इस्लाम के ही तीन वर्ग रहते हैं, शिया, सुन्नी और कुर्द। कुर्द भी सुन्नी समुदाय का ही एक वर्ग हैं, लेकिन अरबी मूल के अन्य सुन्नियों से यह भिन्न हैं। 

    इराक इन तीन समुदायों के शिविर क्षेत्रों में विभाजित हो चुका है। सुन्नियों ने जहां देश के मध्य क्षेत्र के सूबों पर कब्जा जमा रखा है, वहीं शियाओं ने दक्षिण के राज्यों पर अपना आधिपत्य कायम किया है। जबकि कुर्द लड़ाकों की उत्तरी इलाके में स्वायत्त सत्ता है। सद्दाम हुसैन की बाथ पार्टी भी सुन्नियों की ही राजनीति करती थी। वैसे तो सद्दाम का शासन सेकुलर था, लेकिन शियाओं को सत्ता के केंद्र से को दूर ही रखा गया। देश में सांप्रदायिक संघर्ष की नींव तभी से पड़नी शुरू हुई थी, लेकिन अमेरिकी सैनिकों के इराक से वापस जाने के बाद यह संघर्ष और बढ़ गया। इसकी वजह शियाओं और सुन्नियों के बीच सत्ता पर आधिपत्य जमाने की होड़ थी। अमेरिका ने सद्दाम का खात्मा करने के बाद शिया नेता नूर-अल मलिकी को शासन की बागडोर सौंपी, लेकिन ईरान की शिया सरकार से बढ़ती नजदीकी के कारण अमेरिका को यह दांव उल्टा पड़ता दिखा। जानकार मानते हैं कि अमेरिका ने ही अलकायदा की इराकी इकाई आईएसएस ;इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरियाद्ध को बढ़ावा देने का काम किया ताकी ईरान और इराक की शिया सरकारों के बीच बढ़ रही एकता से अमेरिका के लिए संभावित खतरों को समाप्त किया जा सके। लेकिन, इसमें कोई दोराय नहीं कि अमेरिका द्वारा तालिबान की ही तर्ज पर खड़ा किया गया यह संगठन भविष्य में दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है। 
        
        भारत की दृष्टि से बात करें तो कश्मीर का मुद्दे पर पाक स्थित सुन्नी आतंकी संगठनों को आईएसआईएस का प्रश्रय मिलने की भी संभावना है। मालूम हो कि जम्मू-कश्मीर में भी मुस्लिमों का ही हिस्सा शिया और गुर्जर बकरवाल समाज उपेक्षा का शिकार होता रहा है। यहां तक कि श्रीनगर में ताजियों को लेकर भी शिया-सुन्नी रहा है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर सुन्नी आतंकवाद सिर उठा सकता है। आईएसआईएस के कश्मीर तक हस्तक्षेप करने की संभावना की बड़ी वजह उसके मुस्लिम जगत के रहनुमा बनने की चाह है। ऐसे में भारत में सुन्नी मुस्लिमों के एक बड़े वर्ग को प्रभावित करने और कश्मीर में आतंक की नई पौध जमाने के लिए वह इस क्षेत्र में दखल के प्रयास कर सकता है। गौरतलब है कि अलकायदा, लश्कर-ए-तोयबा और तालिबान जैसे आतंकी संगठन भारत में अपने आधार को बढ़ाने और भारतीय मुसलमानों को बरगलाने के लिए कश्मीर को एजेंडे की तरह इस्तेमाल करते रहे हैं। इन सभी आतंकी संगठनों को कश्मीर के भ्रमित सुन्नी युवाओं के बीच ही कमांडरों की तलाश रहती है। इन बेरोजगार और कट्टरपंथियों के प्रभाव वाले युवाओं को भारत के अन्य हिस्सों के मुस्लिम युवाओं की तुलना में बरगलाना आसान होता है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश समेत देश के तमाम हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव भी ऐसे आतंकी संगठनों के लिए उर्वर साबित हुए हैं। इस सबको ध्यान में रखते हुए भारतीय खुफिया एजेंसियों और सरकार को इराक से अपने नागरिकों की सुरक्षित रिहाई के साथ ही देश में आतंकवाद के खतरे को बढ़ने से भी रोकना होगा। इराक की तपिश में हम न तपें कम से कम इसका ख्याल तो हमें रखना ही होगा।

तेल भी है संघर्ष की बड़ी वजह
इराक में जारी वर्तमान संकट की एक बड़ी वजह तेल भी है। यह देश दुनिया में तेल की उपलब्धता के लिहाज से पांचवां और उत्पादकता के लिहाज से आठवां सबसे बड़ा देश है। आईएसआईएस को खड़ा करके अमेरिका तेल के मामले में भी अपना हित सधता देख रहा है। इराक में 17 फीसदी तेल रिफाइनरी कुर्दों के आधिपत्य वाले दक्षिणी क्षेत्र में ही हैं। इराक में 3ण्3 अरब बैलर तेल का उत्पादन प्रतिदिन होता है। हालिया हिंसा के चलते तेल उत्पादन प्रभावित होने और अंतरराष्टीय आपूर्ति में भी कमी आने की संभावना है।

दूसरे देशों के लिए चिंता की वजह
सन् 2003 में सद्दाम हुसैन के सत्ता से बेदखल होने के बाद से इराक क्षेत्रीय ताकतों के लिए संघर्ष के मैदान में तब्दील हो गया है। इराक की शिया सरकार ईरान और सीरिया के करीब है। इसकी वजह वहां भी शिया सरकार होना है। जबकि सुन्नी शासन वाले सउदी अरब और कतर की सरकारें सुन्नी आतंकियों को समर्थन कर रही हैं ताकी सीरिया, ईरान और इराक में अपना प्रभुत्व बढ़ाया जा सके। आईएसआईएस की शुरूआत सीरिया से ही हुई थी, लेकिन बशर अल असद की सरकार से निपटने में विफल रहने के बाद इन लड़ाकों ने अस्थिरता के दौर से गुजर रहे इराक की ओर रूख किया। जहां पहले से छिड़े सांप्रदायिक संघर्ष के चलते इसे अपनी जड़ें जमाने में आसानी हुई।

भविष्य के खतरे
आईएसआईएस आतंकियों ने इराक के महत्वपूर्ण शहर मोसुल में कब्जा जमाने के बाद बगदाद की ओर रूख किया है। भविष्य में इस आग के और भड़कने की संभावना है। ईरान को नूर अल मलिकी की शिया सरकार के साथ ही इराक में रह रहे शिया और कुर्दों की भी चिंता है। इसके अलावा कुर्दों की बड़ी आबादी वाले तुर्की को भी इराक की अस्थिरता ने परेशानी में डाला है। फिलहाल शिया और सुन्नी संघर्ष का मैदान बने इराक में यदि यह झगड़ा बढ़ता है तो तुर्की से अफगानिस्तान तक फैले कुर्द भी कुर्दिस्तान की लड़ाई का ऐलान कर सकते हैं। गौरतलब है कि अफगानिस्तान से नाटो सेनाओं की वापसी के बाद से तालिबान की पकड़ मजबूत हुई है। ऐसे में इराक से लेकर अफगानिस्तान तक यदि आतंकियों का गठजोड़ बनता है तो यह कोई अचरज की बात नहीं होगी।